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________________ पद्म-पुष्प की अमर सौरभ * छह भेद हैं - ( 9 ) अनशन तप, (२) ऊनोदरी तप, (३) भिक्षाचर्या तप, (४) रस - परित्याग तप, (५) कायक्लेश तप, और (६) प्रतिसंलीनता तप । (१) अनशन तप - चारों प्रकार के आहार का त्याग करना अनशन है। अनशन से तन की भी शुद्धि होती है और मन की भी । महात्मा गांधी का भी यह अभिमंत था कि उपवास से शारीरिक दोष नष्ट होते हैं और मनोबल बढ़ता है | शरीररूपी स्वर्ण को निखारने वाला अनशन है। अनशन से मन के विकार नष्ट होते हैं और मनोबल बढ़ता है । मन में पवित्रता आती है और शरीर में अपार तेज प्रकट होता है। अनशन से बढ़कर इस संसार में कोई बड़ा तप नहीं है । सामान्य मानव के लिए तो यह तप करना बड़ा ही कठिन है। कठिन ही नहीं, कठिनतम है। यह एक प्रकार से अग्नि स्नान है, जिससे समस्त पाप मल नष्ट हो जाते हैं और उसकी साधना इस तप के दिव्य प्रभाव से निखर उठती है। आचार्य धर्मदास गणी ने लिखा है- यदि कोई साधक किसी को कठोर वचन कहता है, किसी का अपमान करता है और किसी के मर्म को उद्घाटित करता है तो उसके एक मास के तप से जो प्रबल पुण्य होता है, वह नष्ट हो जाता है। यदि किसी को शाप दिया जाता है तो एक वर्ष का तप नष्ट हो जाता है। अतः साधक को सतत सावधानी रखनी चाहिए । अनशन तप का बहुत बड़ा महत्त्व है | संक्षिप्त रूप में इतना ही बहुत है। (२) ऊनोदरी तप - ऊनोदरी का अर्थ है ऊन = कम, उदरी पेट | भूख से कम खाना ऊनोदरी है। यहाँ पर जिज्ञासा उत्पन्न हो जाती है - पूर्णतया आहार का परित्याग करना तो तप है, किन्तु भूख से कम खाना कैसे तप हो सकता है ? उत्तर में समाधान है कि भोजन के लिए तैयार होकर भूख से कम खाना, भोजन करते-करते बीच में ही उसे छोड़ देना बहुत ही कठिन कार्य है । एक दृष्टि से विचार किया जाये तो उपवास करना सरल है किन्तु भोजन सामने आने पर पेट को खाली रखना, स्वाद आते हुए बीच में ही भोजन को छोड़ देना कठिन है। ऊनोदरी तप का बहुत बड़ा महत्त्व है। ऊनोदरी तप के दो भेद हैं- द्रव्य ऊनोदरी और भाव ऊनोदरी । आहार की मात्रा आवश्यकता से कम लेना, इसी प्रकार वस्त्र आदि में भी कमी करना द्रव्य ऊनोदरी है। भाव ऊनोदरी से तात्पर्य है - आन्तरिक वृत्तियों की ऊनोदरी अर्थात् आन्तरिक अशुभ वृत्तियों को कम करना । क्रोध, मान, माया, लोभादि आन्तरिक वृत्तियाँ हैं। इन वृत्तियों का सर्वथा क्षय करना साधक का लक्ष्य है। किन्तु इन कषायों को एकदम नष्ट करना सम्भव नहीं है। उसके लिए निरन्तर प्रयास आवश्यक है। जैसे आहार की मात्रा धीरे-धीरे कम की जाती है, वैसे ही कषाय की मात्रा को धीरे-धीरे कम करने का प्रयास किया जाता है। =
SR No.002472
Book TitlePadma Pushpa Ki Amar Saurabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVarunmuni
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2010
Total Pages150
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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