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________________ ४८ * पद्म-पुष्प की अमर सौरभ * - सत्य ही भगवान है । जहाँ सत्य है, वहीं पर भगवान है। सत्य का संग करो, जो सत्य का संग करोगे तो भगवान के दर्शन हो जायेंगे । यदि मत का संग करोगे तो सत्य के दर्शन नहीं हो सकते । सत्य के आगे संसार की महान् शक्ति, जिसे भगवान की शक्ति कहते हैं, वह नतमस्तक हो जाया करती है। जब तक सत्याग्रह नहीं करोगे तो तब तक कुछ नहीं मिल सकता। जो कुछ मिलता है, सत्य के द्वारा ही मिलेगा। यदि भगवान की वास्तविक पूजा है, तो सत्य का उच्चारण करना ही है । सत्यभाषी जिनेन्द्र देव की पूजा का लाभ ले रहा है। इसलिए शास्त्रकार कहते हैं - जो जिनेन्द्र भगवान की पूजा करता है, उसकी पूजा तो स्वयं देव और देवांगनाएँ ही अत्यन्त हर्षित होती हुई, मुस्कराये चेहरे से करती हैं। केवल यही पूजा नहीं है, वृक्ष से तोड़कर लाये हुए फूलों से, जो उनकी पूजा की जाये, नहीं वरन् अन्तरात्मा की प्रगाढ़ श्रद्धारूपी प्रसुमनों से जो जिनेन्द्र भगवान की पूजा है । सूत्रकार लिखते हैं“भक्त्या तुष्यंति केवलम् ।” - भगवान तो केवल श्रद्धा-भक्ति से ही प्रसन्न हो जाते हैं। भगवान महावीर ने फरमाया है "धम्मो मंगलमुक्किट्ठ, अहिंसा संजमो तवो। देवा वितं नमसंति, जस्स धम्मे सया मणो ॥ " - दशवैकालिकसूत्र –धर्म मंगल है, उत्कृष्ट है, कल्याणकारी है, धर्म के तीन रूप हैं - अहिंसा, संयम और तप । इनमें जिनका मन लगा रहता है जो धर्म से मुक्त होकर भगवान की भक्ति करता है, उसे देवता भी नमस्कार करते हैं। जिनेन्द्र भगवान की सुबह-शाम पूजा करने वाले संत- मुनिराज रात-दिन अन्य प्राणियों द्वारा वन्दन किये जाते हैं। यह भाव पूजा का महत्त्व है । पूजा के आठ पवित्र फूल आचार्य हरिभद्रसूरि ने ‘योगबिन्दु की टीका' में पूजा के आठ फूल बताते हुए फरमाया है " अहिंसा सत्यमस्तेयं, ब्रह्मचर्यमसंगता । . गुरु भक्तिस्तपो ज्ञानं, अष्टपुष्पानि प्रचक्षते ॥” अर्थात् अहिंसा, सत्य, अचौर्य, ब्रह्मचर्य, निसंगता (अनासक्ति), गुरु-भक्ति, तप और ज्ञान, ये आठ पूजा के फूल फरमाये हैं । संक्षिप्त में इन पर प्रकाश डालेंगे।
SR No.002472
Book TitlePadma Pushpa Ki Amar Saurabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVarunmuni
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2010
Total Pages150
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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