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________________ प्रथम फल : जिनेन्द्र पूजा ४५ का मुकुट लगाती है, भक्ति भक्त को साक्षात् ईश्वर बना देती है। भक्ति का मार्ग बहुत बड़ा विस्तृत मार्ग है । जिनेन्द्र देव की उपासना करना, पूजा करना भक्ति है, जो ईश्वर को छोड़कर अन्य देवों की उपासना करता है वह कुछ नहीं जानता । परन्तु शास्त्रकार कहते हैं- जैसे पेड़ की जड़ को सींचने से उसकी सब डालियाँ और पत्ते तृप्त हो जाते हैं, उसी प्रकार एकमात्र परम पुरुष की भक्ति से सब देवी-देवता प्रसन्न हो जाते हैं। 'नारद-भक्तिसूत्र' के अन्दर एक सूत्र आता है "नास्ति तेषु जाति विद्या रूप कुल धन क्रियादि भेदः।” -भक्ति के मार्ग में जाति, विद्या, रूप, कुल, धन, क्रिया आदि का कोई भेद (महत्त्व) नहीं होता। हमारी भारतीय संस्कृति ने धन की, विद्या, रूप, जाति इत्यादि की पूजा नहीं की है, बल्कि गुणों की पूजा की है, भारतीय संस्कृति ने चारित्र गुण की पूजा की है। व्यक्ति की पूजा नहीं की है। भक्ति चारित्र का निर्माण करती है, भक्ति चारित्र की रक्षा करती है और भक्ति ही आत्म-मैल को धोकर आत्मा को 'स्फटिक के समान निर्मल बना देती है । जिनेन्द्र देव की वास्तव में पूजा है, भगवान के द्वारा बताये हुए मार्ग का अनुसरण करना, उनकी आज्ञा का पालन ही सच्ची पूजा है, सच्ची भक्ति है। भक्ति के रूप भक्ति के तीन रूप हैं - अमृता भक्ति, जला भक्ति, विषा भक्ति । अमृता भक्ति- जो भक्ति आत्म - प्रसन्नता के लिए शान्त और निस्पृह भाव से की जाती है, वह अमृता भक्ति है। भक्ति - जो भक्ति आत्म- ख्याति के लिए कामना और भय की भावना से अभिभूत होकर की जाती है, वह जला भक्ति है। विषा भक्ति- जो भक्ति केवल प्रदर्शन, प्रशंसा और लोक - वंचना के लिए की जाती है, वह विषा भक्ति है। " पूजा च द्रव्य भाव संकोचः ।” - द्रव्य और भाव का संकोच करना ही पूजा है। पूजा कितने प्रकार की है ? पूजा के भेद पूजा के दो रूप हैं- द्रव्य पूजा और भाव पूजा ।
SR No.002472
Book TitlePadma Pushpa Ki Amar Saurabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVarunmuni
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2010
Total Pages150
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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