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________________ * ४४ * * पद्म-पुष्प की अमर सौरभ * ओतप्रोत होकर प्रभु राम का स्वागत कर रही है। भगवान राम शबरी की कुटिया में पहुँच गये। घास-फूस के बने हुए आसन पर प्रभु राम और लक्ष्मण विराजमान हो गये। शबरी प्रभु राम को बेर चख-चखकर दे रही है, कहीं मेरे प्रभु को खट्टे बेर न चले जायें। कुछ बेर राम लक्ष्मण को दे रहे हैं। लक्ष्मण मन में सोचता है-'इस शूद्रा नारी के झूठे बेर मैं खाऊँ ! नहीं।' प्रभु राम से आँख बचाकर वे बेर पीछे डाल दिये। परन्तु भगवान राम की दिव्य दृष्टि से क्या छिपने वाला था? कुछ नहीं ! प्रभु राम ने लक्ष्मण को कहा-“हे लक्ष्मण, आज आपने एक भक्त-हृदया नारी का बहुत बड़ा अपमान किया है। जो बेर आज आपने पीछे डाले हैं, याद रखना यही बेर संजीवनी बूटी का रूप धारणकर युद्ध के समय में लगी शक्ति से तेरी मूर्छा को दूर करेंगे।" ऐसा ही हुआ। भगवान भक्त के वश में हैं। शबरी का यह कथानक हमें बहुत अच्छी शिक्षा प्रदान करता है, हम भी सच्चे अर्थों में भगवान के भक्त बनें निष्काम भक्ति के द्वारा। संक्षेप में और भी दृष्टान्त शिक्षाप्रद हैं___ “सुदामा के चावलों को श्रीकृष्ण महाराज द्वारा रुचिपूर्वक खाये जाना भी भक्ति का परिणाम है।" "हाथी और घड़ियाल-मगरमच्छ के युद्ध में गरुड़ की पीठ पर बैठकर विष्णु का पहुँचना भी भक्ति का एक उदाहरण है।" "द्रौपदी के चीर-हरण की कथा भी भक्तिरस को अमर बनाती है।" "अर्जुनमाली के शरीर में अवस्थित यक्ष की गदा से सुदर्शन सेठ का भयभीत नहीं होना भी भक्ति का ही प्रताप है।” “नन्दन मणियार के जीव द्वारा मेंढक के भव में देव-भव की प्राप्ति कर लेना क्या भक्ति का चमत्कार नहीं है ?" ___“सेठ सुदर्शन ने अपने भक्ति-बल से सूली को भी सिंहासन का रूप दे दिया। भगवान महावीर के सच्चे भक्त थे।" "मीरांबाई का विष पीना, सर्प को गले में डालना, फिर भी मृत्यु को प्राप्त नहीं होना, क्या यह भक्ति का रूप शक्ति का प्रचण्ड प्रभाव नहीं है ?” “प्रचण्ड हिंसा के साधनों के स्वामी अंग्रेजों को भारत से निकालकर बाहर करना, क्या इसमें महात्मा गांधी की भक्ति का रहस्य नहीं छिपा हुआ है?" "भक्त प्रह्लाद जोकि हिरणाकुश राजा का बेटा था, राजा ने अपनी पूजा कराने के लिए, अपना नाम जपाने के लिए, अपने पुत्र प्रह्लाद को अनेक यातनाएँ दीं, परन्तु उनमें अनुत्तीर्ण रहा। आखिरकार भक्त प्रह्लाद की विजय हुई, यह सब भक्ति का चमत्कार था।" भक्ति एक अनुपम और दिव्य आत्म-गुण है, जिसके बल पर आत्मा में'अभयता-निर्भयता' जैसा गुणरत्न उत्पन्न होता है। भक्ति भक्त के सिर पर विजय
SR No.002472
Book TitlePadma Pushpa Ki Amar Saurabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVarunmuni
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2010
Total Pages150
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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