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________________ * प्रथम फल : जिनेन्द्र पूजा * * ४३ * भक्त का मन भी ईश्वर स्वरूप को देखता हुआ अपने आप में ईश्वरत्व का विकास कर लेता है। भक्तिहीन पुरुष के विषय में गोस्वामी श्री तुलसीदास ने 'रामायण' में कहा है “तुलसी प्रभु के भजन बिन, मानुष गदहा होय। रात-दिन लदता फिरे, घास न डाले कोय॥" · भक्त जन के हृदय में ईश्वर का वास ऐसे ही समझो, जैसे कि फूल में ही फल का निवास रहा होता है। जैनागमकार भक्ति की महिमा बताते हुए कहते हैं “मत्तीए जिनवराणं, खिज्जति पुव्व संचियाई कम्माइं।" -अर्थात् जिनवरों की भक्ति से पूर्व संचित कर्म अपने आप ही यों क्षणभर में नष्ट हो जाते हैं, जैसे कि मयूर की ध्वनि मात्र से ही चन्दन वृक्षों के चारों ओर लिपटे हुए सर्प अपने-अपने बिलों में घुस जाते हैं। भक्ति में इतनी शक्ति होती है। भक्ति एक अमर गुण है और इसीलिए यह गुण आत्मा को भी अमर बना देता है, जैसे कि अंग्रेजी में भी कहा है “The Love to the God is Eternal.” ___-अर्थात् ईश्वर के प्रति प्रेम करना अमरत्व की ही आराधना करना है। भक्ति के प्रेम रस का आस्वादन कईयों ने लिया है। पौराणिक एवं आधुनिक दृष्टान्त उपलब्ध है। जैसे-रामायण आरण्यक काण्ड में भक्त हृदया भीलनी का वर्णन आता है-भगवान राम और लक्ष्मण सीता की खोज में जंगल में भ्रमण कर रहे थे। खोज करते-करते रास्ते में महर्षि-संन्यासियों के आश्रम आये। परन्तु प्रभु राम का मन संन्यासियों के आश्रम में नहीं लगा। उधर वन में शबरी नाम की एक भीलनी वन में अपनी कुटिया-झोंपड़ी डाले हुए रह रही थी। महर्षि नारद के द्वारा प्रभु राम की भक्ति में प्रेरित की हुई, प्रभु राम के नाम का सहारा लिए हुए प्रभु को पुकार रही है मेरी झोंपड़ी के भाग आज खुल जानगे, राम आनगे। खट्टे मीठे बेर चाव नाल खानगे, राम आनगे॥" भगवान राम भक्ति-भावना से ओतप्रोत होकर शबरी की कुटिया की ओर खिंचे हुए चले आ रहे हैं। भक्त में शक्ति होनी चाहिए भगवान को खींचने की। अपने अन्दर पूर्ण विश्वास, दृढ़ आस्था, मनोबल मजबूत होना चाहिए। भगवान क्यों नहीं आयेंगे, शबरी क्या देखती है-प्रभु राम मेरी ओर ही आ रहे हैं। प्रभु को देखकर शबरी फूली नहीं समाई, अर्थात् शबरी की प्रसन्नता का पारावार नहीं रहा। हर्षानन्द से
SR No.002472
Book TitlePadma Pushpa Ki Amar Saurabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVarunmuni
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2010
Total Pages150
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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