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________________ * ३८ * . * पद्म-पुष्प की अमर सौरभ * -इन्द्र अर्थात् जीव, जो सर्वलब्धि-भोग परमेश्वरत्वयुक्त हो। परम ऐश्वर्य अर्थ में 'इदि' धातु है। महर्षि पतंजलि ने योगदर्शन' में कहा है “इन्दनाद् परमैश्वर्य योगादिन्द्रो।" __ -जो परम ऐश्वर्य से सम्पन्न है, सर्वद्रव्य उपलब्धि, सर्वभोग उपलब्धि से युक्त है, वह है-परमेश्वर्ययुक्त ‘इन्द्र'। __ इस व्याख्या के अनुसार 'जीव' को अर्थात् 'आत्मा' को इन्द्र माना है। आत्मा अनन्त ऐश्वर्य-सम्पन्न है, अनन्त शक्ति-सम्पन्न है। संसार की कोई भी ऋद्धि-सिद्धि, लब्धि-उपलब्धि ऐसी नहीं है, जो आत्मा की पकड़ से बाहर हो, इसलिए आत्मा इन्द्र है। इसलिए आचार्य ने-'इन्दो जीवो' कहकर जैनदर्शन की मौलिक मान्यता को स्थापित किया है कि इन्द्र कोई व्यक्ति-विशेष या शक्ति-विशेष ही नहीं, किन्तु प्रत्येक आत्मा ‘इन्द्र' है। आप भी, मैं भी। छोटे से छोटा जीव और महान् से महान् जीव शक्ति व सत्ता की दृष्टि से 'इन्द्र' कहा जा सकता है। इन्द्र के विविध गुणों के कारण उसके अनेक स्वरूपों का विद्वानों ने अपने मतानुसार निरूपण किया है। इस कारण इन्द्र शब्द ईश्वरीय व्यापकता व्यक्त करता हुआ दिखाई देता है। पाश्चात्य लेखक सर मोनियर विलियम रचित संस्कृत इंगलिश शब्द-कोश के अनुसार "Indra the God of the atmosphere and sky, the Indian-Jupitor, Pluvius or rain .... he fights against and conquers with his thunderbolt.” . ___-इन्द्र को भारतीय जुपिटर कहा गया है। यह वर्षा का देवता है। अपने वज्र से यह अन्धकाररूपी दुष्टों को विजित कर लेता है। उसके कार्य मानवता के लिए कल्याणकारी हैं। वैदिक वाङ्मय में इन्द्र को यज्ञ का प्रमुख देवता स्वीकार किया गया है“इन्द्रो वै यज्ञः इन्द्रो यज्ञस्य देवता।" इसी मत को शतपथ ब्राह्मण में अनेक स्थलों पर व्यक्त किया गया है। ऐतरेय ब्राह्मण के ७/४३३ में कहा गया हैइन्द्र का महाभिषेक । “अथेन्द्रो वै देवतया क्षत्रियो भवति त्रैष्टुपश्छन्दसा पंचदशस्तोमेन, सोमो राज्येन बन्धुना ....।"
SR No.002472
Book TitlePadma Pushpa Ki Amar Saurabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVarunmuni
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2010
Total Pages150
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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