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* प्रथम फल : जिनेन्द्र पूजा *
* ३७ * इन्द्र कौन ?
भारतीय साहित्य में इन्द्र का बहुत महत्त्वपूर्ण स्थान है। जैन, बौद्ध और वैदिक इन तीनों ही परम्पराओं में इन्द्र के सम्बन्ध में विविध चर्चाएँ हैं। विशेषतः वैदिक साहित्य के ऋग्वेद में इन्द्र शब्द सर्वप्रथम प्रयुक्त हुआ है। तत्पश्चात् यजुर्वेद आदि विस्तृत वैदिक वाङ्मय में भी इसका प्रचुर मात्रा में प्रयोग मिलता है। संस्कृत के लौकिक साहित्य में भी यह भूरिशः प्रयुक्त होता रहा है। किसी भी शब्द की अन्तर्भावना व आत्मा की खोज के लिए व्युत्पत्ति शास्त्र व निर्वचन शास्त्र का आश्रय लेना अनिवार्य है। वैदिक शब्दों पर तो यह बात और भी अधिक लागू होती है। व्याकरण व निरुक्त के अतिरिक्त ब्राह्मण ग्रन्थ भी. वैदिक शब्दों का विश्लेषण करके पूर्णतया व्याख्या करते हैं। स्वामी दयानन्द ने 'यजुर्वेद भाष्य' में इसका प्रयोग किया है।
आचार्य पाणिनि ने इन्द्र शब्द को उणादि सूत्र से निपातित सिद्ध किया है। 'इदि' धातु से कर्ता में रक् प्रत्यय व नुमागम करने पर 'इन्द्र' शब्द व्युत्पन्न होता है-"इदिपरमैश्वर्येभ्वादिगणः" इस व्युत्पत्ति के अनुसार 'इन्द्र' का अर्थ है_
“इन्दति परमैश्वर्यवान् भवति इति इन्द्रः।" -जो सर्वोच्च ऐश्वर्य-सम्पन्न है, वह इन्द्र है। शासन करना भी ऐश्वर्य का द्योतक है। अतः शासनकर्ता शासक भी इन्द्र पद वाच्य है।
यास्क मुनि प्रणीत निरुक्त ग्रन्थ में इन्द्र का निर्वचन करते हुए कहा गया है कि “इन्द्र का इन्द्र नाम इसलिए है कि वह इरा अर्थात् ब्रीहि आदि अन्य को विदीर्ण करता है, उसका दो भागों में विभाजन करता है, वर्षा करके ब्रीहि के बीज को गीला करके अंकुरित कर देता है।' 'इरादार' होने के कारण इन्द्र कहा जाता है। वर्षा से 'इरा' अर्थात् अन्न को देता है। ‘इरादाता' होने के कारण इन्द्र कहलाता है। अन्न को वर्षा द्वारा धारण करता है। अतः 'ईराधारपिता' भी इन्द्र कहा जाता है। वर्षा से अन्न के बीज को तथा भूमि को फाड़ता है, अतः इन्द्र कहलाता है।
औपमन्यव आचार्य के मतानुसार-“सबका साक्षी व दर्शनीय होने से इन्द्र है। ‘इन्दति' धातु से भी इन्द्र शब्द निष्पन्न होता है। शत्रुओं का विनाश करने वाला, भय द्वारा भगाने वाला, याजक व यजमानों का आदर करने वाला होने से इन्द्र है।" ___ जैन आचार्यों ने इन्द्र शब्द की व्याख्या करते हुए ‘विशेषावश्यक भाष्य' में कहा है- .
“इन्दो जीवो, सव्वोवलद्धि-भोग-परमेसरत्तराओ।"