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प्रथम फल : जिनेन्द्र पूजा
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उपरोक्त मन्त्रानुसार इन्द्र का देवताओं द्वारा महाभिषेक हुआ। वेदों में प्रशंसित इन्द्र कोई व्यक्ति-विशेष नहीं, अपितु वैदिक आर्यों का दैवी चिरकालिक राष्ट्रपति है । वह दुष्टों का दमन करता है। ऋग्वेद ४/३०१ में कहा गया है
"नकिरिन्द्रत्वदुत्तरो न ज्यायाम् अस्ति वृत्रहन् नकिरेवा यथात्वम् । ”
- हे ऐश्वर्यवान् इन्द्र ! हे बढ़ते हुए शत्रु और बाधक विघ्नों के नाश करने वाले राजन् ! हे प्रभो ! तुझसे बढ़कर, तेरा प्रतिपक्षी कोई नहीं । तुझसे बड़ा भी कोई नहीं। जैसा तू है, वैसा तेरे समान भी कोई नहीं।
पाश्चात्य विद्वान् मैक्समूलर ने इन्द्र को उज्ज्वल दिन का देवता माना है। इसका अश्व सूर्य है।
प्रो. मैक्डानल ने वैदिक देवताओं का विवेचन करते हुए इन्द्र को इन शब्दों में प्रतिस्थापित किया है। वज्रपाणि इन्द्र, अन्तरिक्षस्थ दानवों को छिन्न-भिन्न करता है, योद्धा लोग निरन्तर उसे आमन्त्रित करते रहते हैं। वह उपासकों का युक्तिदातातथा उनका अधिवक्ता है। एक स्थान पर सूर्य और इन्द्र का एकत्र आह्वान करके उन दोनों का तादृश और तद्रूपता स्थापित की है।
प्रो. विलसन ने कहा- हे इन्द्र ! जैसे ही तुम पैदा हुए, तुमने अपने बल हेतु सोम को पिया, माता (अदिति) ने तुम्हारी महत्ता की प्रतिपत्ति की इसलिए तुमने विशाल अन्तरिक्ष को परिव्याप्त किया हुआ है। तुमने युद्ध में देवों के लिए धनं प्राप्त कराया है। इन्द्र जगत् का स्वामी
'यजुर्वेद भाष्य' में कहा है - वह देवाधिदेव है । महान् ऐश्वर्य का आधार है, स्वयं भी ऐश्वर्यवान् है तथा ऐश्वर्य प्रदाता भी है। ऋतुओं का निर्माता है । कहा भी है“इन्द्रमिव देवा अभिसंविशन्तु तया, देवतयां गिरस्वद् ध्रुवे सीदतम् । "
- यहाँ पर इन्द्र को देवों में प्रधान तथा देवराज प्रतिपादित किया गया है। सुखप्रदेश्वर इन्द्र
मानव इन्द्र को सुख देने वाला ईश्वर मानकर उससे सुख की कामना करता है । यजुर्वेद में निम्न मन्त्र द्वारा उसे परमैश्वर्य युक्त उसे स्वीकार किया गया है
" अश्विना तेजसा चक्षुः प्राणेन सरस्वती वीर्यं । दधुरिन्द्रियम् ॥”
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बलनेन्द्राय