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मानव-जीवन की सार्थकता
२७ ॐ
मनुष्य-जीवन पा लेना एक बात है, इसके उपयोग को समझना और बात है । जिस प्रयोजन के लिए जीवन मिला है, उसी प्रयोजन में इसे लगाना ही मानव-जीवन की वास्तविक परख है । मनुष्य - जीवन को प्राप्त कर लेना बहुत बड़ा सुअवसर है, मगर इसका समुचित लाभ तभी मिल सकता है जब जीवन जीने की कला आती है। मनुष्य-जीवन सबसे उत्कृष्ट जीवन है, परमात्मा के निकट पहुँचाने वाला तथा आत्मा को अत्यन्त विशुद्ध बनाकर स्वयं सिद्ध-बुद्ध-मुक्त बन जाने वाला जीवन है। मनुष्य-जीवन पाकर भी वह दुनियादारी के झमेले में पड़ जाता है, उसे पता ही नहीं लगता कि कब क्यों मुझे मनुष्य-जीवन मिला तथा कब और कैसे वह बीत गया ? एक पौराणिक कथानक याद आ रहा है
उम्र के चार भाग
दृष्टान्त - एक बार ब्रह्मा ने चार प्राणियों को ३०-३० साल की उम्र देकर मर्त्यलोक में भेज दिया। वे चार प्राणी इस प्रकार हैं - गधा, कुत्ता, बैल और मनुष्य । वे चारों पुनः ब्रह्मा के दरबार में उपस्थित हुए। गधा, कुत्ता, बैल इन तीनों ने ब्रह्मा से फरियाद की - " हे ब्रह्मा ! हमारी उम्र बहुत ज्यादा है ।" सबसे पहले गधां बोला - " मैं तीस वर्ष तक बोझ लाद - लादकर मर जाऊँगा।” कुत्ते से पूछा तो वह भी कहने लगा - " तीस वर्ष तक मुझे खाना कौन देगा? जिसके यहाँ भी जाऊँगा, मुझे डण्डा मारकर भगा देगा ।" बैल से पूछा गया तो उसने भी कहा - "तीस वर्ष तक मैं बैलगाड़ी चलाता रहूँगा । खेती-बाड़ी का काम करता रहूँगा । किसान तो मेरा कस निकाल लेगा । बूढ़ा होने पर मेरे को कोई नहीं पूछेगा ।" तीनों की बात को सुनकर मनुष्य से पूछा - " क्यों भाई, तीस साल की आयु ठीक है ?" मनुष्य ने - "मुझे तो बहुत ही कम उम्र मिली है। तीस वर्ष मेरे लाड़-प्यार में तथा पढ़ने-लिखने में ही समाप्त हो जायेंगे ।" तब वे तीनों एकदम बोल उठे - " ब्रह्मा जी ! आप हमारी २० - २० साल की उम्र करके शेष आयु मनुष्य को दे दो ।" ब्रह्मा ने वैसा ही किया । मनुष्य खुशी से फूला नहीं समाया। तब से मनुष्य प्रारम्भ के तीस वर्ष तक मनुष्य का जीवन बिताता है । खाना-पीना, पढ़ना-लिखना भी इस उम्र तक प्रायः माँ-बाप के सहारे होता है। तीस वर्ष पूरे करते ही वह नौकरी करने लग जाता है या किसी धन्धे में प्रवृत्त हो जाता है। इस समय में मनुष्य गधे का-सा जीवन बिताता है। जैसे गधा बोझ ढोता है और मालिक का पेट भरता है, वैसे ही मनुष्य भी अत्यन्त परिश्रम करके कमाकर लाता है और अपने परिवार का पालन-पोषण करता है। इसके पश्चात् मनुष्य नौकरी या व्यवसाय करता हुआ
कहा - "