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पद्म-पुष्प की अमर सौरभ ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र के अन्दर अपने माता-पिता से दीक्षा की आज्ञा लेते हुए मनुष्य जन्म की दुर्लभता बताते हुए कह रहा है - हे माता-पिता ! यह मनुष्य-जन्म अध्रुव है, अर्थात् सूर्योदय के तुल्य नियमित समय पर पुनः पुनः प्राप्त होने वाला नहीं है। इस जीवन में उलटफेर होते रहते हैं, यह अशाश्वत है, क्षण विनश्वर है, सैकड़ों व्यसनों एवं उपद्रवों से व्याप्त है, बिजली की चमक के सम चंचल है, अनित्य है, जल के बुलबुले के समान है, दूब की नोंक पर लटकने वाले जलबिन्दु के समान है, सन्ध्याकालीन के बादलों की लालिमा के सदृश्य है, स्वप्नं दर्शन के समान है। कौन पहले मरेगा और कौन पीछे मरेगा। इसलिए आप मेरे को आज्ञा प्रदान करो। "
सच्चा मानव कौन ?
आज संसार के राजनीतिज्ञ लोग कहते हैं कि आबादी तेजी से बढ़ती जा रही है। दस वर्षों में दुनिया की आबादी (मानव संख्या) आज से दुगुनी हो जाने का अनुमान है। आज भी ढाई-तीन अरब के करीब मानव संख्या है। इसलिए मनुष्य बहुत ही सस्ता है । पशु संख्या घट रही है जबकि मनुष्य संख्या बढ़ रही है। एक आदमी की जरूरत हो वहाँ हजारों आदमियों की एप्लीकेशन आ जायेगी । एक कम्पनी में ५० मनुष्यों की जरूरत थी, वहाँ २५० के करीब एप्लीकेशन आईं। इससे अनुमान लगाया जा सकता है कि मनुष्य कितना सस्ता है। एक मजदूर दिनभर के लिए चाहिए तो बारह आने में मिल जायेगा। लेकिन एक साइकिल दिनभर के लिए चाहिए तो चार रुपये देने होंगे । इसका अर्थ यह हुआ कि मनुष्य की अपेक्षा साइकलि महँगी है । परन्तु सच्चे मानव इतने सस्ते नहीं हैं । वे बहुत दुर्लभ हैं। सच्चे मानव और विकृत मानव में रात-दिन का अन्तर है। सच्चा मानव वह कहलाता है जिसमें मानवता हो ।
आज मनुष्य की आकृति में बहुत से मानव इस भूमण्डल में घूमते दिखाई देंगे। परन्तु उनमें प्रकृति से मानव बहुत ही थोड़े होंगे। एक मन्त्री का चुनाव होता है तो लाखों आदमियों में से एक ही चुना जाता है। इसी प्रकार सच्चा मानव भी हजारों में से एक होता है।
उदाहरण-इटली के महान् व्यक्ति गारफील्ड जोकि बचपन की अवस्था में थे। उस समय किसी ने पूछा - " आप क्या बनना चाहते हो ?” तब बालक गारफील्ड ने कहा- “मैं सबसे पहले मनुष्य बनना चाहता हूँ । यदि ऐसा होने मे सफल न हुआ तो किसी भी कार्य में सफल न हो सकूँगा ।" यह है सच्चा मानव बनने की तीव्रता |