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________________ मानव-जीवन की सार्थकता * २३ में जा रहा था, रास्ते में किसी स्थान पर कीचड़ आया । असावधानी से कीचड़ से उसके पैर भर गये, कीचड़ से लथपथ हो वह विचार करता है - 'क्या किया जाये । अरे ! यह पानी क्या काम आयेगा ?' उसने अमृत को अपने पैरों पर डाल दिया । अमृत से अपने पैरों को धो लिया । सारा अमृत कीचड़ में डाल दिया । फिर कई दिन के बाद महात्मा जी के पास गया और बोला - " महात्मा जी ! आपने कहातेरा जीवन निखर जायेगा परन्तु निखरा तो है नहीं ।" "अरे ! क्या किया उस अमृत का ?” “गुरु जी, मैंने उस अमृत से पैर धो डाले ।” आचार्य कहते हैं- “उस व्यक्ति ने अमृत कलश को धूल में, कीचड़ में पैर धोने में बेकार कर दिया ।" ऐसे ही मानवरूपी अमृत-कलश को यूँ ही व्यर्थ गँवा रहे हैं । अनमोल जन्म मिला इसको विषयभोगों में व्यर्थ गँवा दिया है। क्योंकि कवि ने भी कहा है “ये जन्म मिला प्रभु जपने को, तूने यूँ ही लुटा के रख दिया। क्यों विषय विकारों में फँसकर, बेकार बना के रख दिया ।।" अय मानव ! मनुष्य जन्म दुर्लभ है। इसे पाकर क्या करना चाहिए ? आत्मा का हित, कुसंग का त्याग और सद्गुरु की वाणी से प्रेम करना चाहिए। ये मानव-जीवन संसार के विषय विकारों में बेकार मत करो। जो कामभोगों में आसक्त है, उसका कोई भी इलाज नहीं है और ऐसे इंसान के लिए, जोकि कामरोग से पीड़ित है उसकी कोई भी दवा नहीं है। अरे इंसान ! इस जीवन को अमृत के समान बेकार मत करो। हाथी पर क्यों ढोवे भार ? तीसरा कथानक - " प्रवरकरिणं वाहयत्येन्ध भारम् । ” एक राजा के खुशी का प्रसंग आया। राजा ने प्रसन्न मुद्रा में दान-पुण्य करना प्रारम्भ कर दिया। एक लकड़हारा भी दान लेने राजदरबार में आया तो राजा ने प्रसन्न होकर राजहाथी दे दिया । लकड़हारा खुश हुआ। हाथी लिया और घर पर आ गया । विचार करता है - ' मैं पहले सिर पर लकड़ियाँ लादकर बेचने जाता था । अब राजा ने मुझे हाथी दे दिया है। इसका उपयोग करना चाहिए ।' लकड़हारे ने हाथी के ऊपर ईंधन लादकर बेचना शुरू कर दिया। कई दिन के बाद राजा ने उस लकड़हारे को देखा तो बोला- “ अरे मूर्ख ! तुझे तो मैंने हाथी दिया था सवारी के लिए। पर तूने ईंधन ढोने में लगा दिया है।” आचार्य शुभचन्द्र जी महाराज फरमा रहे हैं - चार गति चौरासी लाख जीव योनि के अन्दर सर्वप्रथम इंसान की योनि महान् मानी गई है। हाथी के समान श्रेष्ठ है । परन्तु इस मनुष्य-जन्म को लकड़हारे की भाँति, मानव कामभोगों का एवं
SR No.002472
Book TitlePadma Pushpa Ki Amar Saurabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVarunmuni
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2010
Total Pages150
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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