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________________ * २४ * * पद्म-पुष्प की अमर सौरभ * विषय-कषायों का भार ढो रहा है और इसे यूँ ही व्यर्थ गँवा दिया है। इसलिए आचार्य कहते हैं-अय इंसान ! तूने इस मानव-जीवन को, अज्ञान के कारण, अविवेक के वशीभूत होकर तथा चिन्ता-शोक का भार ढो रहा है। प्रत्येक समय चिन्ता में डूबा रहता है। संसार के प्रपंचों में फँसकर, मोह-ममत्व में फँसकर मानव-जीवन को बेकार कर रहा है। काक उड़ाने फेंका चिन्तामणि रत्न चौथा कथानक-"चिन्ता रत्नं विकिरति कराद् वायसोड्ढायनार्थ, यो दुष्प्राप्यं गमयति मुधा मर्त्यजन्म प्रमत्तः।" एक जंगल में घसियारा घास खोदता है। सारा दिन घास खोद-खोदकर अपना . जीवन निर्वाह करता है। ऐसे जीवन-क्रम चल रहा है। एक दिन घास खोदकर गठरी बाँधकर चल पड़ा। काम करके थक गया। वृक्ष के नीचे घास की गठरी को उतारकर खुरपा रख दिया है। वहीं पर घास की गठरी पर सिर रखकर लेट गया, उसे नींद आ गई। ऊपर से एक देव-विमान जा रहा है। देव ने उस पर दृष्टि डाली और देखा-कहते हैं इंसान का शरीर मिलना बहुत कठिन। परन्तु यह बेचारा सुबह से शाम तक घास खोदता रहता है, फिर बाजार में बेचता है। इस बेचारे को भगवान का नाम लेने की फुर्सत कब मिलेगी। देव के मन में विचार आया कि 'मैं इसको सुखी बना दूं, ताकि ये भगवान के नाम का स्मरण किया करेगा।' ऐसा सोचकर देव ने उसे जगाया, उठाया। अरे भाई ! ये ले चिन्तामणि रल है, इसे अपने पल्ले में बाँध ले। इससे जो कुछ भी माँगोगे वही मिलेगा। लकड़हारे ने उस चिन्तामणि रत्न को लिया, पल्ले में बाँध लिया। मन में विचार करता है . . "पहले पेट पूजा, फिर काम दूजा।" -अरे ! पहले पेट भरने के लिए भोजन मिलना चाहिए। “ढिड न पइयां रोटियां, ते सव्वे गल्लां खोट्टियां।" . -जब तक पेट में भोजन न हो, तो अन्य काम सब बेकार हैं। .. "भूखे भजन न होय गोपाला, ये लो अपनी कण्ठी माला।" -खाली पेट तो भगवान का भजन भी नहीं होता। . भारतीय साहित्य का सूत्र मुझे याद आ रहा है “अन्नं वै प्राणः।" -प्राण अन्न के आश्रित है।
SR No.002472
Book TitlePadma Pushpa Ki Amar Saurabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVarunmuni
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2010
Total Pages150
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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