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" मनसि शेते - मनुष्यः ।"
- जो मन के भीतर रहता है, चिन्तन-मनन करता है,
मनु महाराज ने 'मनुस्मृति' में कहा है
* पद्म-पुष्प की अमर सौरभ *
"बुद्धिमत्सु नरा श्रेष्ठा, नरो वै देवानां ग्राँमः ।"
- बुद्धिमानों में मनुष्य सबसे श्रेष्ठ है। मनुष्य देवों का ग्राम है अर्थात् निवास स्थान है।
किसी जिज्ञासु ने संस्कृत के विद्वान् से पूछा“किं दुर्लभं ? नृजन्म।”
- इस ब्रह्माण्ड के अन्दर दुर्लभ क्या है ? उत्तर मिला - मानव-जीवन दुर्लभ है। 'स्थानांगसूत्र' में भगवान महावीर स्वामी ने कहा है-चार कारणों से जीव मनुष्यगति का आयुष्य बाँधते हैं - ( १ ) सरल प्रकृति से, (२) विनीत प्रकृति से, (३) दया भाव से, और (४) ईर्ष्या भाव से रहित । मनुष्य जन्म में ही इन चारों गुणों का विकास हो सकता है, अतः यह जन्म सर्वश्रेष्ठ है। आचार्य विनोवा भावे ने मनुष्यजीवन को अनुभव का शास्त्र बताया है। मनुष्य का मापदण्ड उसकी सम्पदा नहीं, अपितु उसकी बुद्धिमत्ता है। 'पद्मपुराण' के अन्दर मानव के छह गुण बताये गये हैं
वह मनुष्य
"दानं दरिद्रस्य विभो क्षमित्वं, युवां तपो ज्ञानवतां च मौनम् । इच्छानिवृत्तिश्च सुखोचितानां, दया च भूतेषु दिवं नयन्ति ॥"
सोने क थाल
है।
- दरिद्र होकर भी दान करना, जो सामर्थ्य वाले हैं उनका क्षमा करना, जो जवान हैं उनका तपस्या करना, जो ज्ञानी हैं उनका मौन रखना, जो सुख भोगने के योग्य हैं उनका सुख की इच्छा का त्याग करना और सभी प्राणियों पर दया करना, ये सद्गुण मनुष्य को स्वर्ग में ले जाने वाले हैं।
में
मानव-जीवन के सम्बन्ध में 'सिन्दूर प्रकरण' के अन्दर आचार्यश्री ने चार कथानक दिये हैं और कहा - " अय इंसान ! सुनो, यह मनुष्य का शरीर तुम्हें मिला है। अरे ! कहीं अज्ञान के कारण, अविवेक व प्रमाद के कारण इसका दुरुपयोग तो नहीं कर रहे हो । आचार्य महाराज स्वयमेव ही कथानक दें रहे हैं।
कूड़ा भरा
पहला कथानक - “स्वर्णस्थाले क्षिपति स रजः ।"