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________________ | * १६ * • * पद्म-पुष्प की अमर सौरभ * | -एक मानव-जीवन ही ऐसा है जिसके द्वारा धर्म आराधना करके मोक्ष पद की प्राप्ति की जा सकती है। भगवान महावीर स्वामी ने मानव-जीवन का महत्त्व बताते हुए फरमाया है "दुल्लहे खलु माणुसे भवे, चिरकालेण वि सव्व पाणिणं। गाढा य विवाग कम्मुणो, समयं गोयम ! मा पमायए॥" -उत्तराध्ययनसूत्र -हे गौतम ! सब प्राणियों के लिए मनुष्य-भव चिरकाल तक दुर्लभ है। दीर्घकाल व्यतीत होने पर भी उसकी प्राप्ति होना कठिन है, क्योंकि कर्मों के फल बहुत गाढ़े होते हैं। अतः समय मात्र भी प्रमाद नहीं करना चाहिए। ___ मानव-जीवन की महिमा अपरम्पार है। इसका मुकाबला देव-जीवन भी नहीं कर सकता। आध्यात्मिक दृष्टि से जब हम विचार करते हैं तथा वीतराग और सर्वज्ञ प्रभु के वचनों पर ध्यान देते हैं तो हमें मालूम पड़ता है कि चरम सीमा तक आध्यात्मिक विकास केवल मनुष्य ही कर सकता है। यद्यपि देवताओं को मनुष्यों की अपेक्षा अधिक सुख और अधिक शक्ति-सामर्थ्य प्राप्त होते हैं, किन्तु आत्म-साधना और उसकी सिद्धि का सवाल जहाँ आता है, वे पीछे रह जाते हैं, क्योंकि देव योनि भोग योनि है, वहाँ आत्मा त्याग की साधना नहीं कर सकता। देवता अधिक से अधिक चार गुणस्थान पा सकते हैं। किन्तु आत्मा की अनन्त शक्ति का उपयोग करने में समर्थ मानव चौदह गुणस्थानों को पार करके परमात्मपद भी पा लेता है। ____ मानव विश्व का श्रृंगार है, उससे बढ़कर विश्व में कोई भी श्रेष्ठ व ज्येष्ठ प्राणी नहीं है। यह मानव-जीवन एक तीर के तुल्य है। अतः खूब सोच-विचारकर पहले अपना लक्ष्य निर्धारितं करो और तब इसे छोड़ो ताकि यह निष्फल न जाने पाये। क्योंकि मानवता का आधार मानव है। मानवता मानव का श्रृंगार है। मानव की सुरक्षा मानवता से होती है और मानवता की सुरक्षा का दायित्व मानव पर है। मनुष्य जब तक मानवीय मूल्यों की परिधि में चंक्रमण करता है, वह मानवता को उपेक्षित नहीं कर सकता। मानवता को उपेक्षित करने का अर्थ है मानवता के मूल्यों को नकारना। मानव चेतना, मानवता से शून्य होकर मानवीय रह ही नहीं सकती। - आज के समाज में यद्यपि विज्ञान की उन्नति ने मानव-जाति की समृद्धि के लिए नये-नये मार्ग खोल दिये हैं। तथापि दोषों की भी एक भारी मात्रा ने हमारे समाज में घर कर लिया है। मनुष्य नये आविष्कारों की चकाचौंध में मनुष्यत्व के पथ से ही भटक गया है, इसलिए उसे आवश्यकता है मानवता की शिक्षा की। तभी उसका
SR No.002472
Book TitlePadma Pushpa Ki Amar Saurabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVarunmuni
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2010
Total Pages150
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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