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________________ * मानव जीवन की सार्थकता * १५ क्योंकि वह आश्चर्य की बात भी थी। दोपहर में जलती लालटेन लेकर घूमने की बात किसी के समझ में न आई। एक स्थान पर दार्शनिक के चारों ओर सैकड़ों व्यक्ति एकत्रित हो गये। उन्होंने दार्शनिक से पूछा - " आप दोपहर के समय लालटेन जलाकर क्या ढूँढ़ रहे हैं ? " दार्शनिक बोला - " मैं इंसान को खोज रहा हूँ।” सभी ने हँसकर कहा कि "हम तो हजारों की संख्या में आपके चारों ओर खड़े हैं। क्या हम इंसान नहीं हैं ?" - दार्शनिक बोला- “नहीं, नहीं । तुम इंसान नहीं हो, इंसान की सूरत के जीव • अवश्य हो । यदि तुम भी मनुष्य हो तो फिर पशु और राक्षस कौन होंगे ? तुम दुनियाभर के अत्याचार करते हो, छल-प्रपंच रचते हो, भाइयों का गला काटते हो, कामवासना की पूर्ति के लिए कुत्तों की तरह मारे-मारे फिरते हो और फिर भी मनुष्य हो ? क्या तुम अपने को मनुष्य समझते हो ? मुझे मनुष्य चाहिए, वन-मनुष्य नहीं ।" “ मनुष्य जन्म का लाभ उठाओ। यह दुर्लभ देह बार-बार नहीं मिलती। अगर यह श्रेष्ठ भव पाकर भी तुमने धर्म के मर्म को नहीं समझा, सन्तों की वाणी को हृदयंगम नहीं किया तथा शुभ कार्य करके पुण्योपार्जन नहीं कर सके तो यह देवताओं को भी दुर्लभ मानव-पर्याय निरर्थक चली जायेगी।” भगवान महावीर स्वामी ने 'उत्तराध्ययनसूत्र' में कहा है "कुसग्गे जह ओसबिन्दुए, थोवं चिट्ठइ लंबमाणए । एवं मणुयाण जीविअं, समयं गोयम ! मा पमाय ॥” -जिस प्रकार घास की नोंक पर पड़ा हुआ जलबिन्दु कुछ देर तक चमकता रहता है, किन्तु कुछ ही क्षणों में वह गिरकर मिट्टी में मिल जाता है, वैसा ही 'मानव-जीवन है। यह शरीर, यह आयु ऐसी चंचल है, क्षणभंगुर है, अतः इस क्षणभंगुर व अपवित्र शरीर से शाश्वत तथा परम धर्म की आराधना करने के लिए हम मनुष्य - जन्म के विषय पर विचार कर रहे हैं। विचारकों ने कहा है- " यह शरीर खेत है और आत्मा किसान है। जो इसमें पाप-पुण्य के बीज बोता है । " शरीर एक मकान है, आत्मा इसमें रहने वाला मालिक है । शरीर एक घोंसला है, आत्मा इसमें रहने वला पक्षी है। शरीर एक नाव है, आत्मा इसे चलाने वाला नाविक है। यहाँ पर मनुष्य जीवन का महत्त्व इसलिए है कि संयम, तप आदि द्वारा मोक्ष की साधना की जा सकती है। इसलिए हमारी भारतीय संस्कृति का उद्घोष है “शरीरमाद्यं खलु धर्म साधनम्।”
SR No.002472
Book TitlePadma Pushpa Ki Amar Saurabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVarunmuni
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2010
Total Pages150
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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