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पद्म-पुष्प की अमर सौरभ
- जिस प्रकार मानव लोक में चक्रवर्ती, देवलोक में इन्द्र, पशुओं में सिंह, व्रतों में प्रशम भाव और पर्वतों में स्वर्णगिरि मेरु प्रधान है। उसी प्रकार संसार के सब जन्मों में मनुष्य जन्म सर्वश्रेष्ठ है।
इस संसार में मनुष्य से श्रेष्ठ कोई भी नहीं है। मनुष्य शरीर पाकर मानव ज्ञान और विवेक के सहारे मानवता के मार्ग पर बढ़ता है । जब जीवन में एक बार मानवता का फूल खिल जाता है, तब मानवता के फूल की महक से संसार का कोना-कोना सुगन्धित हो जाता है। मानवता से महकते जीवन का संसार में सर्वत्र स्वागत होता है ।
“दुर्लभं भारते जन्म।” - इस भारत-भूमि में मनुष्य का जन्म दुर्लभ है।” गोस्वामी तुलसीदास जी ने 'रामचरितमानस' में कहा
" बड़े भाग मानुष तन पावा । सुर दुर्लभ सद्ग्रन्थन गावा ॥”
-यह मनुष्य-जन्म बड़े पुण्योदय से प्राप्त होता है । 'विष्णु पुराण' में कहा गया है
" गायन्ति देवा किल गीतकानि, धन्यास्तु ते भारतभूमिः भागे । स्वर्गापवर्गास्पदमार्गभूते, भवन्ति भूमः पुरुषाः सुरत्वात् ॥”
- देवलोक में बैठे हुए देवता भी गाते हैं कि धन्य हैं वे लोग जिन्होंने भारत जैसी आर्य भूमि, पवित्र भूमि, महान् भूमि में जन्म लिया है। क्योंकि आर्य भूमि से ही स्वर्ग और अपवर्ग-मोक्ष की साधना की जाती है। हम न जाने कब देव, देवता से इन्सान बनेंगे, कब हम अपने बन्धनों को तोड़कर स्वतन्त्र - मुक्त हो सकेंगे। मानव-जीवन दुर्लभ है। आगमों में श्री उत्तराध्ययनसूत्र में, बौद्धों के धम्मपद में, शंकराचार्य के विवेक चूड़ामणि में, ईसाइयों के बाइबिल में, हिन्दुओं के रामायण में तथा मुसलमानों के कुरानशरीफ में, सिक्खों के गुरुग्रन्थ साहब में, इन सभी शास्त्रों एवं ग्रन्थों में मानव जन्म की महत्त्वपूर्ण महिमा गाई गई है। इस संसार में ८४ लाख योनियाँ हैं और उन सब में श्रेष्ठ बताई गई है, मनुष्य योनि । परन्तु जब मनुष्य जीवन प्राप्त करके भी मनुष्यत्व ऐसे दूर रहे तो ऐसे जीवन को क्या कहा जाय ?
उदाहरण - एक बार यूनान का दार्शनिक दोपहर के बारह बजे जलती लालटेन को हाथ में लेकर बाजारों में घूम रहा था। लोगों ने देखा तो बड़ा आश्चर्य हुआ ।