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________________ [ मानव-जीवन की सार्थकता ) अनादि, अनन्त काल से यह आत्मा संसार परिभ्रमण करती चली आ रही है। विभिन्न गतियों, योनियों में दुःख व मोह के थपेड़े खाती हुई आत्मा सुख का अवसर नहीं पाती। दुःख के बन्धनों से मुक्त होने का उसे कोई उपाय नहीं मिलता। दुःखों का किनारा पाते-पाते अन्त में प्रबल पुण्य राशि के संचित होने पर उसे इस दुःखद संसार-यात्रा की परेशानी से मुक्त होने के लिए दुर्लभ अवसर प्राप्त होता है। सभी धर्मों और दर्शनों का कथन है-मनुष्य-शरीर प्राप्त हुए बिना आत्मा को जन्म-मरण से, कर्मों से, विकारों से मुक्ति नहीं हो सकती। चौरासी लाख योनियों में मनुष्य-शरीर ही ऐसा है जिससे इतनी उच्चतम साधना हो सकती है। इस मानव-देह को प्राप्त करने के लिए सर्वप्रथम एकेन्द्रिय से पंचेन्द्रिय तक की (मनुष्यगति के सिवाय) अन्य गतियों और योनियों में अनेक प्रकार की घाटियाँ पार करनी पड़ती हैं। कभी देवलोक, कभी नरक और कभी तिर्यंचगति, कभी असुर योनियों में जीवात्मा कई जन्म-मरण धारण करता है। मनुष्य-जन्म पाकर भी यह जीवात्मा कभी क्षत्रिय, कभी शूद्र, कभी उच्च एवं नीच कुलों में धर्म-संस्काररहित जातियों में उत्पन्न होकर अबोध एवं धर्महीन ही रहता है। क्योंकि वहाँ शरीर की भूमिका से ऊपर नहीं उठ पाता है। उनमें विवेक की जागृति नहीं होती। मनुष्य में भी जब तक धर्म विवेक जाग्रत नहीं होता, धर्म की प्राप्ति कैसे हो सकती है? भगवान महावीर ने फरमाया है . “कम्माणं तु पहाणाए, आणुपुव्वी कयाइ उ। जीवा सोहिमणुप्पत्ता, आययंति मणुस्सयं॥" -जब अशुभ कर्मों का भार दूर होता है, आत्मा शुद्ध, पवित्र और निर्मल बनती है तब कहीं वह मनुष्य की सर्वश्रेष्ठ गति को प्राप्त करता है। जैन संस्कृति के अमर गायक आचार्य अमितगति ने मनुष्य-जन्म की महिमा को गाते हुए कहा है “नरेषु चक्री त्रिदशेषु वज्री, मृगेषु सिंहः प्रशमो व्रतेषु। मतो महीभृत्सु सुवर्णशैलो, भवेषु मानुष्य भवः प्रधानम्॥"
SR No.002472
Book TitlePadma Pushpa Ki Amar Saurabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVarunmuni
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2010
Total Pages150
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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