SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 136
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ * १३२ * * पद्म-पुष्प की अमर सौरभ * सन्त के आगमन की खबर शहर में हवा की भाँति फैल जाती थी। चारों ओर राजमार्ग-उपमार्ग सभी ओर एक हलचल-सी मच जाती। घर-घर में चर्चा चल पड़ती-आज प्रभु पधारे हैं, चलो उनके मंगलमय दर्शन करेंगे। उनकी स्पर्शिनी वाणी के दो शब्द कानों में पड़ेंगे। चारों ओर से जन-समूह उमड़ पड़ता। यह उनके सत्य श्रवण की उमड़ती भावना का परिचायक था। श्रवण के द्वारा आत्मा अपने आप की पहचान करता है। कल्याण-पथ क्या है ? पाप-पथ क्या है? श्रवण विकास की राह और विनाश की राह बताता है। श्रवण का काम केवल राह दिखाना है। किस रास्ते पर चल पड़ना है, यह चुनाव स्वयं करना है। वह तो दृष्टि देता है। चलना पैरों को होगा, पर हाँ श्रवण उलझी हुई गुत्थी को बड़ी बेखूबी से सुलझा देता है। अब यहाँ पर एक प्रश्न उपस्थित होता है-श्रवण करना चाहिए, किसका श्रवण करें? सद्शास्त्र का। शास्त्र-श्रवण मानव-जीवन को उन्नत बनाने का सर्वोत्तम साधन है। जब तक मनुष्य शास्त्र-श्रवण नहीं करता तब तक उसे मालूम नहीं पड़ता कि उसके लिए हेय क्या है और उपादेय क्या है ? अर्थात् उसके लिए छोड़ने योग्य क्या है और ग्रहण करने योग्य क्या है ? शास्त्र शब्द की व्याख्या करते हुए उपाध्याय यशोविजय जी कह रहे हैं-शास्त्र शब्द में दो धातुएँ हैं-शाशु + त्रेङ्। इनका अर्थ क्रमशः अनुशासन करना और रक्षा करना है। “यस्माद् रागद्वेषोद्धतचित्तान् समनुशास्ति सद्धर्मे। संत्रायते च दुःखाच्छास्त्रमिति निरुच्यते सद्भिः॥" -ज्ञानसार अर्थात् राग-द्वेष से उद्धत चित्त वालों को धर्म में अनुशासित करता है एवं उन्हें दुःख से बचाता है, अतएव वह सत्पुरुषों द्वारा शास्त्र कहलाता। उपर्युक्त शास्त्र शब्द का अर्थ किया-'शाशु + त्रेण'। शाशु का अर्थ है-अनुशासन करना। त्रेण का अर्थ है-त्रायण। जो भव-सागर से पार करे, दुर्गति से रक्षा करे, अर्थात् जिसके द्वारा स्व आत्मा पर अनुशासन करने की शिक्षा, पद्धति, प्रणाली उपलब्ध हो और अठारह पापों से रक्षा करे वह शास्त्र है। 'हितोपदेश की प्रस्ताविका' के अन्दर शारत्र का महत्त्व बताते हुए कहा है "अनेकसंशयोच्छेदि, परोक्षार्थस्य दर्शकम्। सर्वस्य लोचनं शास्त्रं, यस्य नास्त्यन्ध एव सः॥"
SR No.002472
Book TitlePadma Pushpa Ki Amar Saurabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVarunmuni
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2010
Total Pages150
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy