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छठा फल : श्रुतिरागमस्य : आगम-श्रमण *
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करने के लिए विशुद्ध जल है। जिनवाणी दिव्य अनुभव एवं अद्भुत औषधि है, जो भवरोग यानि कर्मरोग को सदा के लिए नष्ट कर देती है, यह वैषयिक सुख का विरेचन करने वाली दवा है । चिरकाल व्याप्त मोह विष को उतारने वाला यह जिनवचनरूप पीयूष है, जोकि जन्म-जरा-मरण, विविध आधि-व्याधि को हरण करने वाला अचूक नुस्खा है। सर्व दुःखों को ऐकान्तिक एवं आत्यन्तिक क्षय करने वाला यदि विश्व में कोई ज्ञान है तो वह आगम ज्ञान है। आगम ज्ञान आत्मा में अद्भुत शक्ति स्फूर्ति, अप्रमत्तता को जगाता है। श्रुतज्ञान से 'स्व' और 'पर' दोनों को लाभ होता है। भगवान महावीर ने कहा है- आत्मा श्रुतज्ञान से ही धर्म में स्थिर रह सकता है, स्वयं धर्म में स्थिर रहता हुआ, दूसरों को भी धर्म में स्थिर कर सकता है। अतः श्रुतज्ञान चित्त समाधि का मुख्य कारण है। भव-समुद्र को पार करने के लिए सर्वोत्तम नाव श्रुतज्ञान है ।
(३) सूत्र का तीसरा अर्थ है - सुप्त । जो शब्दों की शय्या पर भावों की गहराई लिए सोया रहता है। सोए हुए व्यक्ति को जगाने पर वह प्रबुद्ध होकर कार्यरत हो जाता है, उसी प्रकार सुप्त भाव व अर्थ जिसमें छिपा रहता है और जिसे चिन्तन के द्वारा जाग्रत करके अनेक प्रकार का विज्ञान प्राप्त किया जा सके, वह है सूत्र ।”
श्रुत और श्रुति की चर्चा कर आये हैं । श्रुत की चर्चा बड़ी विशाल रूप धारण किये हुए है । सामान्यतः श्रुत का अर्थ है - सुनना। क्योंकि श्रु धातु से श्रुत शब्द निष्पन्न हुआ है। श्रुत ज्ञानावरण कर्म का क्षयोपशम होने पर निरूप्यमान पदार्थ जिसके द्वारा सुना जाता है, जो सुनना या सुनाना मात्र है, वह श्रुत है। श्रवण करने का बहुत महत्त्व है।
भारतीय संस्कृति में दो परम्पराएँ महत्त्वपूर्ण रही हैं - पहली स्वाध्याय और दूसरी श्रवण । प्राचीन गृहस्थ प्रातः उठते ही शास्त्र स्वाध्याय करता या किसी ऋषि और सन्त के पास पहुँचकर उनके मुख से दो शब्द सुनता। आज तो युग बदला है, संस्कृति बदली है। दो नई परम्पराएँ आई हैं । बिस्तर से उठते ही चाय देवी का स्वागत करना है, दूसरा पेपर पढ़ना ।
प्राचीन युग की संस्कृति की छाया आगमों में मिलती है । उसमें उस युग के रहन-सहन, आचार-व्यवहार के रेखासूत्र बिखरे मिलते हैं । कथानुयोग देखें तो वहाँ ज्ञात होता है कि भारतीय संस्कृति श्रवण को कितना महत्त्व देती है । जहाँ कहीं वर्णन आता है, अमुक नगर में प्रभु महावीर पधारे हैं या कोई सन्त पधारे हैं।