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* पद्म-पुष्प की अमर सौरभ * __ “आगम्यन्ते मर्यादयाऽवबुद्धयन्तेऽर्थाः अनेनेत्यागम्।” "जिससे पदार्थों का परिपूर्णता के साथ मर्यादितं ज्ञान हो, वह आगम है।" "जो तत्त्व आचार परम्परा से वासित होकर आता है, वह आगम है।" “आप्तवचन से उत्पन्न अर्थ (पदार्थ) ज्ञान आगम कहा जाता है।" “उपचार से आप्तवचन भी आगम माना जाता है।" “आप्त का वचन आगम है।" "जिससे सही शिक्षा प्राप्त होती है, विशेष ज्ञान उपलब्ध होता है, वह शास्त्र आगम या श्रुतज्ञान कहलाता है।” “इस प्रकार आगम शब्द समग्र श्रुति का परिचायक है, पर जैनदृष्टि से वह विशेष ग्रन्थों के लिए व्यवहृत होता है।" आचार्य भद्रबाहु स्वामी ने ‘आवश्यकनियुक्ति' में सूत्र की व्याख्या करते हुए कहा है- .
“तवनियमनाणरुक्खं आरूढो केवली अमिय नाणी। तो मुयइ नाणबुद्धिं भवियजण विवोहणट्ठाए॥ तं बुद्धिमएण पडेण गणहरा गिहिउं निरवसेसं।
तित्थयर भासियाइं गंथंति तओ पवयणट्ठा॥" -तप नियम ज्ञानरूप वृक्ष के ऊपर आरूढ़ होकर अनन्तज्ञानी केवली भगवान भव्य आत्माओं के विबोध के लिए ज्ञान कुसुमों की वृष्टि करते हैं। गणधर अपने बुद्धि पट में उन सकल कुसुमों को झेलकर प्रवचन माला गूंथते हैं। तीर्थंकर केवल अर्थरूप में उपदेश देते हैं और गणधर उसे ग्रन्थबद्ध या सूत्रबद्ध करते हैं। सूत्र का अर्थ
प्राकृत भाषा में सुत्त शब्द आता है, जिसके तीन रूप हैं-सूत्र, श्रुत और सुप्त।
(१) सूत्र का पहला अर्थ है-धागा। धागा बिखरे हुए अनेक फूलों को एक माला में गूंथ सकता है, इसी प्रकार सूत्र बिखरे हुए अनेक विचारों, अर्थों को एक वाक्य माला में गुंफित कर लेता है।
(२) सूत्र का दूसरा अर्थ है-श्रुतज्ञान। जिस सुई में सूत्र-धागा पिरोया हुआ रहता है, वह सुई गिर जाने पर भी खोती नहीं, खो जाने पर खोज निकालना सहज हो जाता है। उसी प्रकार सूत्र-श्रुतज्ञान से युक्त आत्मा संसार की वासनाओं में भटक जाने पर भी सहजतया सम्भल जाती है और आत्म-स्वरूप को प्राप्त कर लेता है। श्रुतज्ञान आत्मा को स्वस्थ बनाने वाला है। श्रुतज्ञान ही विकारों को जलाने वाला महातेज पुँज है। मुक्ति सौध पर चढ़ने के लिए श्रुतज्ञान सोपान है। संसार-सागर से पार होने के लिए सेतु (पुल) है। आत्मा को स्वच्छ एवं निर्मल