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________________ चौथा फल : सुपात्रदान आदि गुणों का उत्तम स्थान है, वह सुपात्र है । वास्तव में मोक्ष के कारण भूतगुणों से युक्त व्यक्ति सुपात्र कहलाता है । ' उत्तराध्ययनसूत्र' में सुपात्र को सुक्षेत्र कहा है और तदनुसार हरिकेशीय अध्ययन में यक्ष और ब्राह्मणों के संवाद के रूप में सुक्षेत्र का लक्षण बताया है - “जे माहणा जाइ विज्जोववेया, ताइं तु खेत्ताइं सुपेसलाई। उच्चावयाइं मुणिणो चरंति, ताइं तु खेत्ताइं सुपेसलाई ।” १११ - जो ब्राह्मण अथवा साधक जाति ( चारित्र) और विद्या (ज्ञान) से युक्त है, वह • क्षेत्र सुन्दर - शोभन क्षेत्र है। संयम के आग्नेय एवं उच्चावच पथों पर जो मुनि विचरण करते हैं, वे क्षेत्र सुशोभन क्षेत्र हैं। जो साधक (गृहस्थ या साधु ) सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और अहिंसा सत्यादि सम्यक् चारित्र से युक्त हो, चाहे वह अणुव्रती हो या महाव्रती, वह सुपात्र है। (२) अपात्र - आचार्य अमितगति 'श्रावकाचार' में अपात्र की परिभाषा करते हुए फरमा रहे हैं “गत कृपः प्रणिहन्ति शरीरिणो, वदति यो वितथं परुषवचः । हरति वित्तमदत्तमनेकधा, मदनवाणहतो भजतेऽङ्गनाम् ॥३६॥ विविध दोष विधायिपरिग्रहः, पिबति मद्यमयंत्रितमानसः । कृमिकुलाकुलितैर्ग्रसते पलं, कलुष कर्म विधान विशारदः॥३७॥ दृढ़ कुटुम्ब परिग्रह पंजरः, प्रशम - शील-गुण- व्रतवर्जितः । गुरु कषाय भुजंगम सेवितं, विषय लोलमपात्र मुशंतितम् ॥३८॥” -श्रावकाचार, अ. 90 - जो निर्दयी होकर प्राणियों की हिंसा करता है, कठोर वचन एवं झूठ बोलता है, बिना दिये हुए धन को अनेक प्रकार से हरण करता है, कामबाण से पीड़ित होकर स्त्री प्रसंग करता है । अनेक दोषों के जनक परिग्रह से युक्त है, स्वच्छन्द होकर शराब पीता है, जीव-जन्तुओं से व्याप्त माँस को खाता है, पापकर्म करने में चतुर है। कुटुम्ब - प ब- परिग्रह के मजबूत पींजरे में जकड़ा हुआ है, शम, शील और गुणव्रतों से रहित है और जो तीव्र कषायरूपी सर्पों से घिरा हुआ है, ऐसे विषयलोलुपी को आचार्य ने अपात्र कहा है । (३) कुपात्र - ' उत्तराध्ययनसूत्र के हरिकेशीय अध्ययन' में यक्ष और ब्राह्मणों के संवाद में कुपात्र एवं कुक्षेत्र की चर्चा की है
SR No.002472
Book TitlePadma Pushpa Ki Amar Saurabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVarunmuni
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2010
Total Pages150
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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