________________
* १०६ *
* पद्म-पुष्प की अमर सौरभ *
स्वदया की विरोधी है, न उसकी पोषक ही है, मात्र पुण्यबन्ध रूप है, परन्तु आगे चलकर सम्यक्त्व-प्राप्ति में हेतु बन सकती है, जैसे-हाथी के भव में मेघकुमार के जीव के द्वारा कृत दया। कैसे? संक्षिप्त शब्दों में- .
मेघकुमार कथानक-मगध देश, राजगृही नगरी, श्रेणिक राजा, धारिणी महारानी, जिसके पुत्र-रत्न उत्पन्न हुआ। जिसका नाम मेघकुमार रखा गया। पढ़-लिखकर एवं सर्वकलाओं में निपुण हो गया। उधर चौबीसवें तीर्थंकर भगवान महावीर अपनी शिष्य-समुदाय के साथ राजगृही नगरी के बाहर गुणशील चैत्य में विराजमान हो गए। जन-समूह दर्शन एवं प्रवचनों के उमड़ा इधर राजा श्रेणिक (जो भगवान महावीर का परम उपासक था), महारानी धारिणी, राजकुमार मेघ भी भगवान के दर्शनों एवं उपदेश के लिए समवसरण में पहुँचे। वन्दन नमस्कार किया, बैठ गए। भगवान ने दिव्य वाणी का उद्घोष किया। वाणी सुनी। लोगों ने यथाशक्ति नियम पच्चक्खान किये और चले गए।
मेघकुमार उठा, भगवान से कहा-भंते ! आपकी वाणी सुनी है, मुझे संसार से विरक्ति हो गई है। आप मुझे अपने पावन पुनीत चरणों में स्थान दो, यानि मैं भी दीक्षित होना चाहता हूँ। भगवान ने एक ही बात कही
“अहा सुहं देवाणुप्पिया ! मां पडिबंधं करेह।" -हे देवताओं के प्यारे ! जैसा सुख हो, वैसा करो, परन्तु धर्मकार्य में ढील मत करो, क्योंकि श्वास का भरोसा नहीं है फिर आएगा या नहीं। भगवान की वाणी सुनी। माँ-बाप से कहा-“हे माता-पिता ! मैं साधु बनना चाहता हूँ।" माता-पिता ने बहुत समझाया पर नहीं माना। अन्त में भगवान के चरणों में मेघकुमार राजकुमार की दीक्षा हो गई। दीक्षा के बाद पहली रात्रि, संतों में छोटा संत मेघ मुनि रात्रि के समय आसन पडिलेहणा, अन्त में दरवाजे के पास आसन लग गया। भगवान के चरणों में संत लोग कोई पृच्छा के लिए, कोई लघु शंका, कोई ध्यान समाधि के लिए आ-जा रहे हैं, आते-जाते किसी का पाँव लग रहा है, किसी का रजोहरण लग रहा है। मुँह से खमाऊँ-खमाऊँ मेघ मुनि, सारी रात नींद नहीं आई। मेघ मुनि परेशान हो गया, दुःखी मन से सोचने लगा-'जब तक मैं साधु नहीं बना था तब तक सभी चाहते थे। पर मैंने वो माता-पिता का प्यार, राजसी सुख छोड़कर साधु बना, पर यहाँ भी सुख नहीं। इससे तो मैं प्रातःकाल होते ही भगवान को बताकर अपने घर चला जाऊँगा।'