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________________ तीसरा फल : सत्त्वानुकम्पा : जीवदया * १०१ * तिनके खाकर पेट भरते हैं, किसी को भी नहीं सताते, फिर हमारे प्राण क्यों लेते हो ?” सुबुक्तगीन को दया आ गई। हृदय में अनुकम्पा जाग उठी। उसने बाण धनुष पर से उतार लिया और चला आया । रात्रि के समय में, जब वह सो रहा था, उसके कमरे में एक फरिश्ता (देवदूत) प्रगट हुआ और बोला- “ सुबुक्तगीन ! आज तुमने एक हिरनी की रक्षा की इससे खुदा तुम पर अतिप्रसन्न हुआ है। इस नेकी के बदले तुम जल्दी ही बादशाह बनोगे। अचानक ही उसके देश के बादशाह का दुःखद देहावसान हो गया। सुबुक्तगीन को उस देश का बादशाह बना दिया गया । जब खुदा रहीम है और रहम करने वालों से खुश होता है, तब यह कैसे माना जा सकता है कि वह बकरों की कुर्बानी से और मांसभक्षण से खुश होता होगा। बाइबिल में तो स्पष्ट ही लिखा है "Thou shalt not kill." - तू किसी को भी मत मार । ईसामसीह का तो यहाँ तक उपदेश है कि कोई तुम्हारे दायें गाल पर चाँटा मारे तो उसकी ओर बायाँ गाल भी कर दो, कभी भी बदला लेने की भावना न रखो। अतः संसार के सभी धर्मों में दया का महत्त्वपूर्ण स्थान है। दया की महिमा “परदुःखविनाशिनी करुणा ।” - दया दूसरों के दुःखों का निवारण करने वाली है ' “कोडिकल्लाणजणणी, दुक्ख - दुरियारिवग्गनिट्ठवणी । संसार-जलहरतरणी, एकाचिय होइ जीवदया ।।” - धर्मबिन्दु –एकं ही यह जीवदया करोड़ कल्याण करने वाली है । दुःख, दुरित (पाप) एवं अरि (शत्रु) वर्ग को नष्ट करने वाली है तथा संसार - समुद्र को पार करने के लिए नौका है। "दयादुर्गतिनाशिनी ।" - दया दुर्गति का नाश करने वाली है। दया पालने वाले को नरक तिर्यंच गति में नहीं जाना पड़ता । दया प्राणीमात्र पर अनुकम्पाभाव है। इसके सम्बन्ध में भगवान महावीर ने कहा है
SR No.002472
Book TitlePadma Pushpa Ki Amar Saurabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVarunmuni
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2010
Total Pages150
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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