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________________ | * १०० * * पद्म-पुष्प की अमर सौरभ * -दुःखी के प्रति दया दिखाना मानवीय गुण है, किन्तु दुःखी के दुःख को मिटाना ईश्वरीय गुण है। . अनुकम्पा सर्वव्यापक संसार के सभी धर्म प्राणीमात्र पर दया करने का उपदेश देते हैं। कोई भी ऐसा धर्म नहीं जिसमें दया के विपरीत क्रूरता की प्रेरणा दी गई हो। यह पशुबलि, नरबलि आदि जो हिन्दूधर्म में प्रचलित हैं, वे स्वार्थी और स्वादलोलुप व्यक्तियों का प्रचार मात्र हैं, धर्म का यथार्थ तत्त्व नहीं। देवी-देवता पर बलि चढ़ाने की तो बात ही क्या, वृक्षों के फल-फूल और पत्ते भी नहीं तोड़ने चाहिए क्योंकि इससे उन्हें कष्ट होता है। __ हिन्दू लोग अपने भगवान की मूर्ति पर चढ़ाने के लिए तुलसी के पत्ते तोड़ते हैं। एक दिन एक पुजारी तुलसी-दल तोड़ रहा था। पत्ते टूटने से टहनी काँपती ही है। पुजारी बोला-“अरी क्यों धुजावे ? तेरे पत्ते हरी को चढ़े।" अर्थात् यह सुनकर टहनी आवेश में आ गई। उसी समय एक सर्प निकल आया। वह पास खड़े पुजारी के छोटे-से पुत्र के पास जा पहुँचा। पुत्र को मृत्यु के सन्निकट देख पुजारी थरथर काँपने लगा। तभी सर्प मानव-वाणी में बोल उठा-“अरे, पुजारी अब क्यों काँपे ? तेरा पुत्र हरि को चढ़े।" तब सर्प ने समझाया-“भविष्य में कभी भी तुलसी के पत्ते मत तोड़ना। जिस तरह तुमको दुःख होता है, उसी तरह तुलसी का वृक्ष भी पत्ते तोड़ने से कष्ट पाता है।" "मुझे ऐसी पूजा नहीं करनी।" पुजारी ने घबड़ाते हुए कहा। पुजारी समझ गया और उसने आगे फिर कभी किसी वृक्ष के फल-फूल-पत्ते आदि न तोड़ने का निश्चय किया। किसी भी धर्म में ऐसी कुप्रथाएँ सम्मत नहीं हैं। मुसलमान भाई बकरीद का त्यौंहार बकरों की कर्बानी से मनाते हैं। लेकिन खदा किसी भी जीव की बलि पसन्द नहीं करता। खुदा रहीम (रहम करने वाला) है। खुदा का ऐसा कोई नाम नहीं जिसमें क्रूरता या हिंसा का लेश भी हो वरन् वह तो जीवदया से खुश होता है। एक बार सुबुक्तगीन शिकार खेलने जंगल में गया। वहाँ उसे एक हिरनी दिखाई दे गई। उसने धनुष पर बाण चढ़ा लिया। लेकिन हिरनी भागी नहीं, वह उसी की ओर टुकर-टुकर देख रही भी। __ उसकी आँखों में आँसू छलछला आये थे, मानो कह रही हो-"हम निरीह भोलेभाले जीवों को क्यों मारते हो? हमने तुम्हारा क्या बिगाड़ा है ? जंगल में
SR No.002472
Book TitlePadma Pushpa Ki Amar Saurabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVarunmuni
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2010
Total Pages150
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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