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* पद्म-पुष्प की अमर सौरभ * जीव मालूम होता है। प्रातःकाल सब साधुओं को समझाकर उसे आचार्यपद से हटाया और योग्य साधु को आचार्य बनाया। इस प्रकार अभव्य जीव के हृदय में अनुकम्पा नहीं होती है। सम्यग्दृष्टि की अनुकम्पा ___ सम्यग्दृष्टि पुरुष तो कसाई आदि दुष्ट प्राणियों पर भी अनुकम्पा रखते हैं
और उन्हें पापकर्मों से छुड़ाने का यथाशक्ति प्रयत्न करते हैं। अगर वह पापकर्म का त्याग कर दे तो ठीक, यदि न त्याग करे तो उसकी कर्म गति प्रबल जानकर उस पर भी द्वेष नहीं करते हैं। जिस प्रकार गृहस्थ अपने कुटुम्ब को दुःख से बचाने के लिए उपचार करता है, उसी प्रकार सम्यग्दृष्टि- .
"मित्ती मे सव्व भूएसु।" अर्थात् सब प्राणियों पर मेरा मैत्रीभाव है, ऐसा मानता हुआ और “वसुधैव कुटुम्बकम्।" अर्थात् जगत् के समस्त प्राणियों को अपना कुटुम्ब जानता हुआ, उनके हित सुख की योजना करता है। दान से भी दया-अनुकम्पा अधिक कही गई है, क्योंकि धन समाप्त हो जाने पर दान देना बंद हो जाता है, किन्तु अनुकम्पा का झरना सम्यग्दृष्टि के हृदय में निरन्तर झरता रहता है। यह अनुकम्पा ही सम्यग्दृष्टि का लक्षण है एवं अनुकम्पा है। ____ 'दशवैकालिकसूत्र के चतुर्थ अध्याय' में विवेक को ही अनुकम्पा कहा गया है। यथावसर की हुई अनुकम्पा ही सार्थक होती है। खेती सूखने के बाद वर्षा बेकार है। इसीलिए सर्व तीर्थंकर वर्षीदान देकर ही दीक्षित होते हैं। कुछ लोग • दया दान का निषेध करते हैं। उनका कहना ये है कि अव्रती, अप्रत्याख्यानी को दान देने से अथवा उनकी रक्षा करने से कर्मों का बन्ध होता है। परन्तु ऐसा नहीं है। • उदाहरण-भगवान महावीर ने स्वयं वैश्यायन बाल तपस्वी द्वारा गौशालक पर तेजोलेश्या छोड़े जाने पर अपनी शीतलेश्या द्वारा उसकी रक्षा की। अनुकम्पा, दया, दान जैनधर्म के मूल स्तम्भ हैं, धर्म के बीजभूत हैं
__“मूलं नास्ति कुतो शाखाः।" -यदि जड़ ही नहीं तो शाखा कहाँ से होगी? अतः अनुकम्पा जैनधर्म की आधारशिला है।