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________________ तथागत बुद्ध ने अपने अष्टांगिक मार्ग में समाधि को विशेष महत्त्व दिया। सही शब्दों में, समाधि तक पहुँचने के लिए ही बौद्धदर्शनसम्मत अष्टांग मार्ग में शेष सात अंगों का वर्णन हुआ है। समाधि को प्राप्त करने के लिए वहाँ ध्यान' आवश्यक माना है। जैनदर्शन में योग भारतीय दर्शनशास्त्रों में जैनदर्शन का अपना एक विशिष्ट स्थान रहा है। जैसा कि हम आगे बतायेंगे - योगविद्या के प्रथम प्रणेता आदि तीर्थंकर ऋषभदेव (हिरण्यगर्भ) हैं, अतः जैन दर्शन में भी योग का महत्त्व अत्यन्त प्राचीन काल से मान्य रहा है। जैन दर्शन में 'योग' शब्द कई सन्दर्भों में प्रयुक्त हुआ है; यथा-संयम, निर्जरा, संवर आदि के अर्थ में; तथा एक- दूसरे अर्थ में भी इसका प्रयोग मिलता है, यथा—मन, वचन, काय का व्यापार अर्थात् मनोयोग, वचनयोग और काययोग। उत्तराध्ययन सूत्र, जो भगवान महावीर की अन्तिम वाणी है, उसमें योग शब्द का कई बार प्रयोग मिलता है। जोगव उवहाण - योगवान । तथा उसी सूत्र में यह गाथा मिलती है अर्थात् - वाहन को वहन करते हुए भी बैल जैसे अरण्य को लांघ जाता है उसी प्रकार योग को वहन करते हुए मुनि संसार रूपी अरण्य को पार कर जाता है। वहणे वहमाणस्स, कंतारं अइवत्तई । जोए वहमाणस्स, संसारो अइवत्तई ॥ यहाँ 'योग' शब्द संयम साधना के अर्थ में प्रयुक्त हुआ है। 14 सूत्रकृतांग में भी 'जोगवं " शब्द आया है। यहाँ भी यह संयम अर्थ में ही प्रयुक्त हुआ है और टीकाकार ने इसका अर्थ समाधि किया है। 1. 2. 3. 4. मज्झिमनिकाय; दीघनिकाय, सामञ्ञफल सुत्त, बुद्धलीलासार संग्रह, पृष्ठ 128; समाधिमार्ग (धर्मानन्द कौसाम्बी), पृष्ठ 15. उत्तराध्ययन सूत्र, अध्ययन 11. उत्तराध्ययन सूत्र, 27/2. जययं विहराहि जोगवं, अणुपाणा पंथा दुरुत्तरा ! अणुसासणमेव पक्कम्मे, वीरेहिं सम्मं पवेदियं ।। - सूत्रकृतांग, प्रथम श्रुतस्कन्ध अध्ययन 2, उद्देशक 1, गा. 11 * 16 अध्यात्म योग साधना
SR No.002471
Book TitleAdhyatma Yog Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2011
Total Pages512
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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