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________________ पर मस्तिष्क को वैसी ही जानकारी मिल सकती है, जैसी नेत्रों से मिलती है। बात भी यही है, जैनदर्शन के अनुसार भी आत्मा की चैतन्यधारा सम्पूर्ण शरीर में व्याप्त है, क्षयोपशम भी सम्पूर्ण आत्मप्रदेशों में है, सिर्फ निवृत्ति के उपकरण, जिन्हें इन्द्रियाँ कहा जाता है, शरीर के विभिन्न स्थानों पर केन्द्रित हैं, इसीलिये आत्मा उस इन्द्रिय - विशेष से तज्जन्य ज्ञान प्राप्त कर पाता है। यदि त्वचा को अधिक संवेदनशील बनाया जा सके तो आत्मा त्वचा से ही अन्य सभी इन्द्रियों का ज्ञान प्राप्त करने में सक्षम हो जायेगा । उपर्युक्त उदाहरणों से यह स्पष्ट होता है कि मानव के भीतर असीम व अगणित क्षमताएँ हैं, शक्तियाँ हैं; आवश्यकता है सिर्फ उन्हें पहचानने व विकसित करने की । शरीर से मन की शक्ति असीम है और मन से आत्मा की शक्ति अनन्त है । इन शक्तियों को पहचानने व विकसित करने का साधन है, योग । योग द्वारा शरीर, मन एवं आत्मा की सुप्त शक्तियों का ज्ञान एवं उनका विकास किया जा सकता है । इसीलिए योग-साधना शक्ति जागरण का मार्ग है। शरीर की अन्य अद्भुत विशेषताएँ : चक्रस्थान और मर्मस्थान मांस, मज्जा, अस्थि, रक्त आदि के अतिरिक्त शरीर में कुछ अन्य अद्भुत विशेषताएँ भी हैं। हमारे शरीर में अनेक मर्मस्थान हैं, चक्र हैं। मर्मस्थान सात सौ हैं और चक्र सात हैं। मर्मस्थानों का चिकित्सा शास्त्र में विशेष उपयोग हुआ है, जापान की एक्यूपन्चर चिकित्सा प्रणाली का आधार ये मर्मस्थान ही हैं। चक्रों का महत्व यौगिक प्रक्रियाओं में है । मर्मस्थानों पर ज्ञानतन्तु अधिक एकत्रित और सघन होते हैं। ये स्थान परस्पर ' सम्बन्धित भी होते हैं। यही कारण है कि शरीर में किसी एक स्थान पर सुई चुभोने से दूसरे स्थान का दर्द बन्द हो जाता है। हमारे यहाँ पहले कानों को छेदने की प्रथा थी । उसका चिकित्साशास्त्रीय कारण यह था कि कानों को छेदने से मनुष्य की मानसिक उत्तेजना कम हो जाती थी, क्योंकि कानों का निचला हिस्सा (कान की लौ, जहाँ स्त्रियाँ ईयर - रिंग आदि पहनती हैं) मर्मस्थान है और उसका मस्तिष्क के उत्तेजनादायक तन्तुओं से सीधा सम्बन्ध है। चक्रस्थान वे होते हैं जहाँ ज्ञान तन्तु उलझे होते हैं। चक्रस्थान, सूक्ष्म शरीर (तैजसशरीर) में हैं (इसे कोई-कोई भावनाशरीर भी कहता है) किन्तु इनका आकार बनता है स्थूल शरीर ( औदारिक शरीर) में। * मानव शरीर और योग 5
SR No.002471
Book TitleAdhyatma Yog Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2011
Total Pages512
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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