SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 502
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ हमारे श्रमण संघ के सुयोग्य, परम सेवाशील, वरिष्ठ संत भंडारी जी श्री पद्मचन्द जी म. के विद्वान् अन्तेवासी, कुशल लेखक श्री अमर मुनि जी म. ने उपर्युक्त पुस्तक का एक बृहत् ग्रन्थ के रूप में परिष्कृत, परिवर्धित संस्करण तैयार कर बड़ा उत्तम कार्य किया है। योग के तुलनात्मक अध्ययन के साथ-साथ इदानीन्तन युग में प्रयोज्य साधना-पद्धतियों पर भी उन्होंने प्रकाश डाला है, जो श्लाघनीय है। ऐसा ग्रन्थ जन-जन के हाथों में पहुँचे, यह बड़े हर्ष का विषय है। इसके लिए मैं भंडारी श्री पद्मचन्द जी म. को, जो श्री अमर मुनि जी के कृतित्व के प्रेरणा-स्रोत हैं तथा श्री अमर मुनि जी का, जो जीवन निर्माणात्मक साहित्य-सर्जन में तन्मयतापूर्वक यत्नशील हैं, अपनी उत्तमोत्तम कृतियों द्वारा भारती का भंडार भर रहे हैं, हृदय से वर्धापित करता हूँ। श्री अमर मुनि जी के श्लाघनीय प्रयत्नों से श्रमण संघ की गरिमा में चार चाँद लगे हैं, मैं उनके संयम-संपृक्त श्रुतोपासनामय जीवन की उत्तरोत्तर समुन्नति की सत्कामना करता हूँ। नेमाणी बंगला, पंचवटी, नासिक -युवाचार्य मधुकर मुनि श्रावण-शुक्ला प्रतिपदा, वि.सं. 2040 ००० आचार्य श्री आत्माराम जी महाराज अपने युग के महान् पुरुष थे। जैन आगमों के रहस्य वेत्ता और व्याख्याकार थे। वे समन्वय-मूलक विचारों के पक्षधर थे। अतः उनकी ज्ञान रश्मियां सदा ही समता एवं समन्वय का आलोक फैलाती रही। आचार्य श्री ज्ञानयोगी तो थे ही, सच्चे कर्मयोगी भी थे। वे उच्च स्तर के साधक थे। योग विषय के पंडित ही नहीं, किंतु वे स्वयं योगी थे। इसलिये उनकी वाणी तथा लेखनी में आकर्षण तथा जीवनस्पर्शिता थी। आचार्य श्री का साहित्य आज भी उतना ही उपयोगी व रोचक लगता है। आचार्य श्री की एक सुन्दर कृति है-'जैन आगमों में अष्टांगयोग'। ... पंजाब के प्रसिद्ध सन्त तथा आचार्य श्री के प्रपौत्र शिष्य उपप्रवर्तक भंडारी श्री पद्मचंद जी महाराज ने श्री अमर मुनि जी को प्रेरित कर आचार्य श्री की उक्त कृति का नवीन शैली में जो परिष्कृत-परिवर्द्धित स्वरूप तैयार करवाया है, वह जन-जन के लिए उपयोगी तथा मार्गदर्शक बनेगा, ऐसा विश्वास है। श्री अमर मुनि जी ने अत्यधिक श्रम करके 'योग' पर जो इतना सुन्दर लेखन किया है, वह स्व. आचार्य श्री की गरिमा के अनुरूप ही है। मेरी हार्दिक मंगल कामना के साथ बधाई। मेडता सिटी - -मुनि मिश्रीमल (श्रमणसूर्य प्रवर्तक श्री मरुधर केसरी जी महाराज) ००० * 424 * परिशिष्ट *
SR No.002471
Book TitleAdhyatma Yog Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2011
Total Pages512
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy