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हृदय कमल पर ध्यान-कुछ साधक नवपद की साधना हृदय कमल पर भी करते हैं।
इसके लिए साधक अपने हृदय कमल पर अष्टदल कमल की रचना करता है। उसकी कर्णिका पर 'णमो अरिहंताणं' पद लिखता है, इसके ऊपर उत्तर दिशा में 'णमो सिद्धाणं' दायें हाथ के पूर्व दिशा में कमल-पत्र पर 'णमो आयरियाणं', 'णमो अरिहंताणं' के ठीक नीचे दक्षिण दिशा में 'णमो उवज्झायाणं', और बाएँ हाथ की ओर पश्चिम दिशा में णमो लोए सव्वसाहूणं' तथा शेष चार विदिशाओं में क्रमशः 'नमो णाणस्स', 'नमो दंसणस्स', 'नमो चरित्तस्स' और 'नमो तवस्स' ये चारों पद स्थापित करता है। __वह 'नमो अरिहंताणं' से शुरू करके 'नमो तवस्स' पर अपनी प्राणधारा को समाप्त करता है, अर्थात् उसकी प्राणधारा हृदय कमल पर ही चक्राकार घूमती है। इससे हृदय चक्र जागृत हो जाता है, कषायों की. उपशान्ति हो जाती है और साधक को आन्तरिक प्रसन्नता की अनुभूति होती है।
चक्रों पर नवपद का ध्यान-इसमें साधक अपने आज्ञा चक्र पर ‘णमो अरिहंताणं' पद को स्थापित करता है, सहस्रार चक्र में 'णमो सिद्धाणं' पद को. दायीं कनपटी पर 'णमो आयरियाणं', विशुद्धि चक्र पर ‘णमो उवज्झायाणं', बायीं कनपटी पर 'णमो लोए सव्वसाहूणं', पद को तथा दायीं आँख पर 'नमो दसणस्स', चिबुक के दायीं ओर 'नमो नाणस्स', बायीं ओर 'नमो चरित्तस्स' और बायीं आँख पर 'नमो तवस्स' को स्थापित करता है।
फिर णमो अरिहंताणं' से प्राणधारा को शुरू करके 'नमो तवस्स' पर समाप्त करता है। इस प्रकार बार-बार ध्यान करने से साधक के विशुद्धि, आज्ञा
और सहस्रार तीनों चक्र जागृत हो जाते हैं। उसकी वासनाओं का क्षय होता है, कषायों के आवेग उपशान्त हो जाते हैं, अतीन्द्रिय ज्ञान की उपलब्धि हो जाती है, भूत, भविष्य और वर्तमान उसके सामने प्रत्यक्ष हो जाते हैं, आत्म-ज्योति के दर्शन होते हैं और साधक को आत्म-साक्षात्कार के साथ-साथ आत्मानुभूतिरूप अनिर्वचनीय आत्मिक सुख की उपलब्धि होती है।
ॐ की साधना भारतीय संस्कृति में 'ॐ' का विशिष्ट स्थान है। सभी मोक्षवादी परम्पराएँ इसका महत्व स्वीकार करती हैं। वैदिक परम्परा का तो यह प्राण ही है। प्रत्येक मन्त्र में इसका होना अनिवार्य-सा है। वैदिक ऋषि तो ब्रह्म
• नवकार महामंत्र की साधना • 389 *