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नासाग्र दृष्टि रखकर अथवा पलक बन्द करके सर्वप्रथम 'ण' अक्षर का ध्यान करें। ऐसा महसूस हो जैसे अनन्त आकाश में श्वेत वर्ण का - स्फटिक के समान श्वेत वर्ण का 'ण' अक्षर उभर रहा है। वह अक्षर लगभग 1 मीटर (तीन फीट) लम्बा है। बहुत ही चमकदार है । उसमें से श्वेत रंग की प्रकाश किरणें निकल रही हैं। उसकी ज्योति चारों ओर विकीर्ण हो रही है। उससे समूचा आकाश ही सफेद रंग का हो गया है।
इसके उपरान्त उस अक्षर के आकार को घटाते जाएं, कम करते जाएं और बिन्दु के समान अति सूक्ष्म कर लें; किन्तु ज्यों-ज्यों अक्षर का आकार घटे उसकी चमक बढ़ती जानी चाहिए।
इसी प्रकार इस पद के शेष अक्षरों 'मो' 'अ' 'रि' 'हं' 'ता' 'णं' को कल्पना से लिखें और उनका ध्यान करें।
द्वितीय सोपान - अब सम्पूर्ण 'णमो अरिहताणं' पद का ध्यान करें। इस पूरे पद को साक्षात् अनन्त आकाश में लिखा देखें। पहले इसके स्थूल रूप, अर्थात् बड़े-बड़े अक्षरों का ध्यान करें; फिर समूचे पद का आकार घटाते जाएं किन्तु चमक बढ़ाते जायँ और इसे बिन्दु तक ले आवें। फिर आकार बढ़ावें और समस्त आकाश में व्याप्त कर दें, तदुपरान्त आकार घटाते हुए बिन्दु तक 'ले आवें। इस घटाने-बढ़ाने के क्रम से चमक बढ़ती रहनी चाहिए और सम्पूर्ण आकाश स्फटिक के समान श्वेत रहना चाहिए ।
इस प्रकार इस पूरे पद का बार-बार ध्यान करें और अभ्यास इतना दृढ़ कर लें कि जब भी आप इच्छा करें और पलकें बन्द करें तो यह पूरा पद आपको श्वेत वर्णी दिखाई देने लगे।
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तृतीय सोपान – इस पद को श्वेत वर्ण से लिखा हुआ देखने के साथ-साथ इस पद के अर्थ का चिन्तन करें। इस पद का अर्थ है- अरिहंतों को नमस्कार। अरिहंत अनन्त चतुष्ट्य के धनी होते हैं। अनन्त चतुष्ट्य हैं-अनन्त दर्शन, अनन्त ज्ञान, अनन्त सुखं और अनन्त वीर्य । अरिहंत-अठारह दोषों से रहित होते हैं, हित- मित- प्रिय वचन बोलते हैं, सर्वज्ञ - सर्वदर्शी होते हैं, आदि-आदि...। अरिहंतों के गुणों का चिन्तवन करें।
लेकिन चिन्तवन में ऐसा न हो कि इस पद को जो आप श्वेत रंग से लिखा हुआ देख रहे हैं, वह ओझल हो जाय, अथवा मन का एकीकरण ज्ञान केन्द्र से हट जाय। पद का साक्षात् दिखाई देना और पद के अर्थ का ध्यान दोनों साथ-साथ चलते रहें। इसका भी दृढ़ अभ्यास कर लें।
378 अध्यात्म योग साधना