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________________ (5) साधक की दृष्टि बाह्याभिमुखी से अन्तर्मुखी हो । (6) कषायों - आवेगों-संवेगों की तीव्रता में कमी हो; कषाय क्षीण हों । (7) वीतरागता तथा समताभाव का विकास हो । ( 8 ) मानव शरीर के शक्ति केन्द्रों, चैतन्य केन्द्रों-चक्रों में प्राण-शक्ति की सघनता होती है, वहीं से वीर्य शक्ति प्रस्फुटित होती है। महामन्त्र वीर्यवान मन्त्र होता है। अतः उससे वीर्य-शक्ति प्रस्फुटित हो जाती है । (9) साधक की संकल्पशक्ति दृढ़ होती है। (10) बाह्य पदार्थों के प्रति साधक की मूर्च्छा टूटती है। (11) अध्यात्म-दोषों-राग-द्वेष तथा आवरण, विकार और अन्तराय का नाश होता है। साथ ही मानसिक एवं शारीरिक रोग भी उपशांत होकर साधक शारीरिक और मानसिक रूप से भी स्वस्थ रहता है। - इन कसौटियों के अतिरिक्त महामंत्र की साधना के विशिष्ट फल अथवा साधक को उपलब्धियाँ भी होती हैं (1) साधक की इच्छाओं की तृप्ति नहीं, अपितु उनका विसर्जन व समापन होता है। (2) सुख-दुःख की पूर्वकालीन मान्यताएँ परिवर्तित हो जाती हैं अर्थात् सुख-दुःख के बारे में उसका दृष्टिकोण समीचीन बनता है। (3) साधक की अधोमुखी (संसाराभिमुखी) वृत्तियाँ ऊर्ध्वमुखी (आत्माभिमुखी) बनती हैं। (4) मार्ग (मोक्ष-मार्ग - आत्म- मुक्ति एवं आत्म-सुख) की उपलब्धि होती है। साथ ही साधक के अन्तर् में उस मार्ग पर आगे बढ़ने की अन्त:स्फुरणा जागृत होती है। (5) साधक की आत्म-शक्ति ( चैतन्य शक्ति), आनन्द और वीर्य शक्ति का समन्वित एवं एक साथ (simultaneous) विकास होता है। नवकार मंत्र की साधना द्वारा ये सब उपलब्धियाँ साधक को प्राप्त होती अतः नवकार मंत्र निश्चित ही महामंत्र है। महामन्त्र का साक्षात्कार एवं सिद्धि साधारण मानव ही नहीं, साधकों के मन में भी यह जिज्ञासा रहती है कि मंत्र का साक्षात्कार कब होगा, सिद्धि कब प्राप्त होगी, कब मंत्र सिद्ध * मंत्र - शक्ति - जागरण 369
SR No.002471
Book TitleAdhyatma Yog Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2011
Total Pages512
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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