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________________ प्राण-शक्ति की अद्भुत क्षमता और शारीरिक एवं मानसिक स्वस्थता प्राणीमात्र के जीवन का आधार प्राण-शक्ति है, किन्तु मनुष्य में यह शक्ति बढ़ी-चढ़ी होती है। इस विकसित हुई शक्ति के आधार पर ही मानव सृष्टि का सर्वश्रेष्ठ प्राणी कहलाता है। उसे तीक्ष्ण बुद्धि (Keenest intellect) इसी शक्ति के कारण प्राप्त हुई है। इसी शक्ति के बल पर मानव आध्यात्मिक और भौतिक दोनों प्रकार की उन्नति के चरम शिखर पर पहुँचने की क्षमता रखता है। मानव की प्राणशक्ति दुधारी तलवार है। यह रक्षक भी है और भक्षक , भी; विष्णु के समान पालन करने वाली है तो शिव के समान संहारक भी; यह प्रशस्त भी है और अप्रशस्त भी। वस्तुतः यह एक शक्ति है, और यह साधक की मनोवृत्ति पर निर्भर है कि इस शक्ति का उपयोग वह स्व-पर-कल्याण के लिए करे अथवा विनाश के लिए। प्राणशक्ति, यदि आधुनिक वैज्ञानिक शब्दावली में कहा जाए तो जैव विद्युत (Biological Electric) है। यह जैव विद्युत प्राणी में तैजस शरीर में उत्पन्न होती है और समूचे औदारिक कायतन्त्र का परिचालन करती है; मस्तिष्क से लेकर सम्पूर्ण शरीर में दौड़ती है। मस्तिष्क से लेकर हाथ की अँगुलियों के पोरुओं तक और शरीर के इंच-इंच भाग को ठण्डा और गरम रखने के लिए-बाह्य मौसम से अनुकूलन करने के लिए नाड़ियों का जाल बिछा हुआ है। किन्तु अनुकूलन का यह संपूर्ण कार्य प्राणशक्ति करती है डॉ. ब्राउन के अनुसार-शारीरिक एवं मानसिक कार्यों के संचालन के लिए मानव को इतनी शक्ति की आवश्यकता होती है, जितनी से एक बड़ा मील (Mill) चलाया जा सकता है तथा छोटे बच्चे के शरीर में व्याप्त शक्ति से एक रेलवे इंजन चलाया जा सकता है। * 348 * अध्यात्म योग साधना *
SR No.002471
Book TitleAdhyatma Yog Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2011
Total Pages512
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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