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________________ अतः यह शरीर को नीरोग रखता है। शरीर की नीरोगता के साथ-साथ मनःस्वास्थ्य और मन:समाधि में भी सहयोगी बनता है। इस प्रकार साधक प्राण-साधना में क्रमशः आसन-शुद्धि, नाड़ी-शुद्धि और पवन-साधना करता है, प्राणों यानी सूक्ष्म शरीर को तीव्र करता है और अनेक विशिष्ट शक्तियों की उपलब्धि करता है। किन्तु जब तक ये उपलब्धियाँ बहिर्मुखी रहती हैं, अन्तर्मुखी नहीं हो पाती तब तक ये आध्यात्मिक उपलब्धियाँ, अध्यात्म-साधना नहीं बन पातीं। फिर भी इनसे साधक को अनेक प्रकार के मानसिक एवं शारीरिक लाभ प्राप्त होते हैं। - प्रारम्भ में जो दश प्राण बताये गये हैं, वे प्राणायाम की साधना से बलशाली बनते हैं, उनकी कार्यक्षमता बढ़ती है, इन्द्रिय और मन सूक्ष्मग्राही बनते हैं। यही प्राण साधना की फलश्रुति है। ००० * प्राण-शक्ति : स्वरूप, साधना, विकास और उपलब्धियाँ - 331*
SR No.002471
Book TitleAdhyatma Yog Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2011
Total Pages512
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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