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प्राणायाम का शरीर पर प्रभाव
आधुनिक शरीर-विज्ञान के अनुसार मानव-शरीर के अन्दर काम करने वाले प्रधान अंग समूह हैं-(1) स्नायु जाल (Nervous system)], (2) ग्रन्थि समूह (glandular system), (3) श्वासोपयोगी प्रणाली (respiratory system), (4) रक्तवाहिनी प्रणाली (circulatory system), (5) पाचन संस्थान (digestive system)।
__ प्राणायाम से इन सभी अंग समूहों को लाभ होता है। प्राणायाम में पूरक के समय जो लम्बी गहरी साँस ली जाती है, उससे रक्त अधिक शुद्ध होता है और शुद्ध रक्त सम्पूर्ण शरीर में फैलकर स्फूर्ति और चुस्ती देता है। मस्तिष्क से लेकर पैरों तक के सभी अंग बलशाली बनते हैं।
सामान्य साँस लेने में फेफड़ों के कुछ ही अंश क्रियाशील होते हैं और शेष अंश निष्क्रिय पड़े रहते हैं। किन्तु प्राणायाम (गहरी साँस लेने) से फेफडों के सभी अंग सक्रिय हो जाते हैं। परिणामस्वरूप राजयक्ष्मा (तपैदिक T.B) नहीं हो पाती और यदि प्रारम्भिक अवस्था (Primary stage) में हो तो ठीक भी हो जाती है। इसी प्रकार फेफड़ों सम्बन्धी अन्य रोग जैसे Plurisy आदि भी ठीक हो जाते हैं।
शुद्ध रक्त मिलने से ग्रन्थि समूह ठीक तरह से काम करने लगेगा, शीघ्र ही बुढापे के लक्षण प्रगट नहीं होंगे (क्योंकि बुढ़ापा Thyroid ग्रन्थि की निष्क्रियता से आता है और प्राणायाम से यह ग्रन्थि सक्रिय बनी रहती है), शरीर फूर्तीला बना रहेगा और कार्यक्षमता भी बढ़ेगी। ___ व्यायाम पाचन संस्थान के लिए भी बहुत सहायक है। रेचक, पूरक और कुम्भक-तीनों दशाओं में उदर की नाड़ियाँ सिकुड़ती और फैलती है। इस प्रकार उनका व्यायाम हो जाता है और वे स्वस्थ बनी रहती हैं।
इस प्रकार प्राणायाम से शरीर स्वस्थ बना रहता है। मांसपेशियाँ (muscles) लचीली और सुदृढ़ बनी रहती हैं, गुर्दे (kidney), यकृत (Liver), प्लीहा आदि सभी अंग सुचारु रूप से काम करते हैं, फेफड़ों में लचीलापन बना रहता है और श्वास-कास आदि रोग नहीं हो पाते।
प्राणायाम शारीरिक दृष्टि से रोग-निवारक और रोग-प्रतिरोधक' है, 1. विभिन्न प्रकार के रोगनिवारण और उपलब्धियों के लिए द्रष्टव्य हेमचन्द्राचार्यकृत
योगशास्त्र, पाँचवां प्रकाश और शुभचन्द्राचार्यप्रणीत ज्ञानार्णव।
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अध्यात्म योग साधना *