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________________ प्रशान्तवाहिता स्थिति होती है। प्रशान्तवाहिता का अभिप्राय है-निरोध संस्कार धारा।' फिर निरोध संस्कारों के क्रम की भी समाप्ति हो जाती है। तदुपरान्त वह आत्मा कृतकृत्य होकर अपने निज स्वरूप में, चितिशक्ति अथवा चैतन्य सत्ता में प्रतिष्ठित हो जाती है। अर्थात् पुरुषार्थ-शून्य गुणों का प्रतिप्रसव किंवा स्वप्रतिष्ठारूप मोक्ष (निर्वाण) प्राप्त कर लेती है।' इस प्रकार स्पष्ट है कि महर्षि पतंजलिवर्णित अष्टांगयोग का आठवां और अंतिम अंग समाधि (संप्रज्ञात और असंप्रज्ञात दोनों प्रकार की समाधि) का जैन दर्शनसम्मत शुक्लध्यान में अन्तर्भाव हो जाता है। इसे यों भी कहा जा सकता है कि शुक्लध्यान का ही दूसरा नाम पतंजलिप्रोक्त समाधि है।' पतंजलि ने ध्यान और समाधि को अलग-अलग मानकर इन्हें योग के दो अंग बताया है। किन्तु जैन दर्शन ने ध्यान के ही दो भेद-धर्मध्यान और शुक्लध्यान स्वीकार किये हैं। यदि यथार्थ दृष्टि से विचार किया जाये तो पतंजलिप्रोक्त समाधि भी ध्यान ही तो है; साधक जो-जो और जैसी साधनाएँ शुक्लध्यान में करता है उनका जो क्रम आदि है वैसा ही समाधि में है। अतः शुक्लध्यान और पतंजलिवर्णित समाधि में नाम के अन्तर के सिवाय अन्य कोई भेद प्रतीत नहीं होता। जैन दर्शन की मूल मान्यता (द्वादशांग वाणी और आगमयुगीन मान्यता) में 'योग' का अन्तर्भाव ध्यान में ही किया गया है। वहाँ ध्यान को प्रमुखता दी गई है। और ध्यान की उत्कृष्टता तथा चरम स्थिति शुक्लध्यान है। अतः जैन दर्शन में ध्यान के अतिरिक्त समाधि का कोई स्थान नहीं है, यह ध्यान की अवस्थाविशेष ही है। 1. तस्य प्रशान्तवाहिता संस्कारात्। -पातंजल योगसूत्र 3/10 2. ततः कृतार्थानां परिणामक्रमसमाप्तिर्गुणानां। -पातंजल योगसूत्र 4/32 3. पुरुषार्थशून्यानां गुणानां प्रतिप्रसवः कैवल्यं स्वरूपप्रतिष्ठा वा चितिशक्तिरिति। -पातंजल योगसूत्र 4/34 4. (क) समाधिरिति च शुक्लध्यानस्य एवं नामान्तरं परैः परिभाषितम्...। (ख) अत्र चतुर्विधोऽपि सम्प्रज्ञातसमाधिः शुक्लध्यानस्याद्यपदद्वयं प्रायो नातिशेते...। (ग) अतश्चरमशुक्लध्यानांशस्थानीयोऽसम्प्रज्ञात समाधि...इत्यादि। ___ -शास्त्रवार्तासमुच्चय की वृत्ति 'स्याद्वाद कल्पलता' में उपाध्याय यशोविजय जी *शुक्लध्यान एवं समाधियोग * 311 .
SR No.002471
Book TitleAdhyatma Yog Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2011
Total Pages512
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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