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________________ आँखें खोलकर उत्तरसाधक से कहा- वत्स ! इतनी जल्दी तुमने मेरी समाधि क्यों भंग कर दी ? मैं तो लम्बे समय तक समाधिस्थ रहना चाहता था। उत्तरसाधक ने अपनी विवशता बताई - गुरुदेव ! बाहर देखिए, क्या हो रहा है ? ऐसे संकट के समय मैं और क्या करता ? मेरे पास और उपाय ही क्या था ? जैसी अघट घटना आचार्य पुष्यमित्र के साथ घटित हुई, वैसी, संभव अन्य साधकों के साथ भी घटित हुई हो। ऐसी घटनाएँ भी महाप्राण - ध्यान साधना की विलुप्ति का कारण बनी होंगी। यद्यपि महाप्राणध्यान साधना विलुप्त हो गई फिर भी जैन शास्त्रों में साधक को प्रेरणा दी गई कि वह सूक्ष्म प्राणायाम के साथ धर्म और शुक्लध्यान की साधना करे ।' इस प्रकार महाप्राणध्यान साधना के विलुप्त होने पर भी संवरयोग के रूप में सूक्ष्मप्राण साधना जैन साधकों में चलती रही। 1. तावसुहुमाणुपाणू, धम्मं सुक्कं च झाइज्जा । ००० - आवश्यक निर्युक्ति 1514; - आवश्यक नियुक्ति अवचूर्णि, पृ. 221 * ध्यान योग-साधना 295
SR No.002471
Book TitleAdhyatma Yog Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2011
Total Pages512
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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