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________________ (2) मृषानुबन्धी रौद्रध्यान-इस ध्यान वाले मनुष्य का चित्त सदा झूठ-फरेब, छल-कपट आदि में लगा रहता है। फलस्वरूप, वह सफेद झूठ बोलता है और अपना झूठ पकड़े जाने पर भी ढीठ बना रहता है। ठगी, विश्वासघात, धूर्तता आदि उसके स्वभाव में होते हैं। वह दूसरे के साथ ठगी, कपट आदि करके प्रसन्न होता है। (3) स्तेयानुबन्धी रौद्रध्यान-ऐसा व्यक्ति चोरी, तस्करी आदि के विषय में ही चिन्तन करता है। परिणामस्वरूप वह सभी प्रकार की चोरियाँ भी करता है और अपनी चोरी की कला पर प्रसन्न होता है, गर्व करता है, इठलाता है और शेखी बघारता है। (4) विषय संरक्षणानुबन्धी रौद्रध्यान-काम-भोग के साधन एवं धन आदि के संरक्षण, उन्हें और अधिक बढ़ाने की लालसा, व्यापार आदि तथा धनोपार्जन के साधनों की, लाभवृद्धि की अभिलाषा आदि सभी विषय संरक्षणानुबन्धी चिन्तन रौद्रध्यान हैं। ऐसा मनुष्य काम-भोग के साधन, धन आदि सांसारिक वैभव के संचय और संरक्षण में सतत व्यस्त रहता है, उन्हीं के बारे में उसका चिन्तन चलता रहता है। आर्त और रौद्र दोनों ही ध्यान आत्मा की अधोगति के कारण हैं। इनके मूल कारण राग-द्वेष-मोह और क्रोध आदि कषाय हैं। इसीलिए ये भव-भ्रमण और संसारवृद्धि के हेतु हैं। अतः इनकी गणना तपोयोग के अन्तर्गत नहीं की गई है। तपोयोग के अन्तर्गत न होने पर भी ध्यानयोगी साधक के लिए आर्त-रौद्रध्यान को जानना जरूरी है। साधना में सफलता प्राप्त करने के लिए साधक को इनका ज्ञान होना अनिवार्य है। अन्यथा वह इन दोनों ध्यानों से बचेगा कैसे ? जो महत्त्व स्वर्णशोधक (Refiner) के लिए स्वर्ण में मिले मैल को जानने का है, वही महत्त्व तपोयोगी साधक को इन आर्त-रौद्रध्यान को जानने का है। इन दोनों ध्यानों को जानकर इन्हें छोड़ना, यही ध्यानयोगी के लिए इष्ट है। इन दोनों ध्यानों का विसर्जन योग-मार्ग में सहायक बनता है, यही इनको जानने की उपयोगिता है। धर्मध्यान : मुक्ति-साधना का प्रथम सोपान साधक के वे सब क्रिया-कलाप एवं विचारणा, जिनमें धर्म की प्रमुखता हो और आर्त-रौद्र परिणाम न हों, धर्म-क्रियाओं में परिगणित होती हैं, * 282 * अध्यात्म योग साधना
SR No.002471
Book TitleAdhyatma Yog Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2011
Total Pages512
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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