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________________ रखता है और न झुकाकर ही। दोनों बाहों को घुटनों की ओर लम्बा करके प्रशस्त-ध्यान में निमग्न हो जाता है तथा उपसर्गों और परीषहों को सहन करता है। यह कायोत्सर्ग की साधना है। कायोत्सर्ग की साधना लेटकर और बैठकर भी की जा सकती है। यह शिथिलीकरण की प्रक्रिया है। इसमें मन-वचन-काय तीनों योगों को शिथिल करके सम अवस्था में लाया जाता है, इनके तनावों को दूर किया जाता है जिससे कायोत्सर्ग की स्थिति में सहज रूप से आया जा सके। कायोत्सर्ग की साधना में साधक धीरे-धीरे अपने श्वास को सूक्ष्म करता चला जाता है। श्वास को स्थूल से सूक्ष्म करने की क्रिया यौगिक प्रक्रिया है। इस प्रक्रिया द्वारा जब श्वास सूक्ष्म हो जाता है तो साधक को शारीरिक एवं मानसिक शान्ति प्राप्त होती है, उसके तनाव अनुबन्ध शिथिल जाते हैं। ___ कायोत्सर्ग द्वारा तपोयोगी साधक मन-वचन-काय की प्रवृत्तियों को स्थिर करता है। इस स्थिरीकरण से उसका अपने स्थूल और सूक्ष्म शरीर (औदारिक और तैजस्) के प्रति ममत्व भाव टूटता है, ममत्व ग्रंथियाँ टूटती हैं, काया और आत्मा की अभिन्नता की भ्रान्ति मिटती है। उसकी आत्मा में हल्कापन आता है। आत्मा की अनुभूति होती है। __इस प्रकार कायोत्सर्ग या शरीर व्युत्सर्ग तप से साधक का देहात्म-भाव समाप्त हो जाता है। (3) उपधि व्युत्सर्ग-जब साधक अपने शरीर को ही अपना नहीं मानता, उसके प्रति ही उसका ममत्व टूट जाता है तो उपधि (धार्मिक उपकरण) को अपना कैसे मानेगा ? तपोयोगी साधक उपधि के प्रति भी मोह नहीं रखता। (4) भक्तपान व्युत्सर्ग-आहार-पानी के प्रति अनासक्ति। आहार आदि स्थूल शरीर को चलाने के साधन हैं। जब साधक को देह से ही ममत्व नहीं रहता तो आहार आदि के प्रति ममत्व का प्रश्न ही कहाँ है ? इस स्थिति में साधक आहार करता है तो उसी प्रकार जैसे बिल में सर्प प्रवेश करता है, अर्थात् उसका भोजन के प्रति अनासक्त भाव हो जाता है। 1. मूलाराधना 2/116 विजयोदया टीका * आभ्यन्तर तप : आत्म-शुद्धि की सहज साधना * 269 *
SR No.002471
Book TitleAdhyatma Yog Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2011
Total Pages512
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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