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वैज्ञानिक शोधों से यह सिद्ध हो गया है कि सामान्य मनुष्य के विद्युत-शरीर (Electric body) (तैजस् शरीर) से विकीर्ण होने वाली मानवीय विद्युत तरंगें (Man Electric Waves) उसके स्थूल शरीर से 6 इंच बाहर तक निकलती रहती हैं। अतः जिस स्थान पर मनुष्य बैठता है, उसको भी ये तरंगें प्रभावित करती हैं और वहाँ स्थित पुद्गल स्कन्धों में भी तीव्र प्रकम्पन होता है, उन प्रकम्पनों से सम्पूर्ण वातावरण प्रभावित हो जाता है। यदि व्यक्ति पूर्ण स्वस्थ हो और उसकी मनोभावनाओं का आवेग तीव्र हो तो उसकी मानवीय विद्युत तरंगों का विकिरण 27 व 3 (ढाई-तीन फीट) तक हो सकता है और उतनी ही अधिक मात्रा में वातावरण भी प्रभावित होता है। ___ चूँकि स्त्री से स्त्री हारमोन्स (Female harmones) निसृत होते हैं और वे पुरुष हारमोन्स (Male harmones) को अधिक मात्रा में आकर्षित / प्रभावित करते हैं, इसलिए साधक को स्त्री-संपृक्त स्थान में रहने का आगमों में निषेध किया गया है। इतना विशेष है कि युवती स्त्री में स्त्री हारमोन्स अधिक मात्रा में बनते हैं और वृद्धा स्त्री में इनकी मात्रा कम हो जाती है, इसलिए ध्यानशतक तथा आगमों की (उत्तराध्ययन सूत्र आदि की टीका) टीका में स्त्री का अर्थ प्रायः युवती किया गया है। फिर भी स्त्री शब्द में नारी मात्र का समावेश है।
नपुंसक की काम वासना का दृष्टान्त तो आगमों में नगर-दाह से दिया गया है, उसकी काम वासना भी अति तीव्र होती है, उसकी विचार तरंगें प्रायः वासनाप्रधान रहती हैं अतः उससे संपृक्त स्थान में तो तपोयोगी को बिल्कुल भी नहीं बैठना चाहिए। पशुओं में राजसिक और तामसिक तरंगें होती हैं, सात्विक तरंगें नहीं होती, इसलिए तपोयोगी का स्थान उनसे भी रहित होना चाहिए। ____ आसन आदि के प्रयोग के बारे में जो साधु के लिए यह विधान है कि "जिस आसन पर स्त्री बैठी हो, विवशता होने पर भी साधु एक मुहूर्त के बाद ही उसका उपयोग करे' उसका कारण भी यही है कि स्त्री के विद्युत् शरीर से जो तरंगें निकलकर उस आसन के परमाणुओं को प्रकम्पित करती हैं, उसके आसन छोड़ने के एक मुहूर्त में वे परमाणु शान्त हो जाते हैं, उन पर हुआ विद्युत् तरंगों का प्रभाव समाप्त हो जाता है।
1.
जैन साहित्य का बृहद् इतिहास, भाग 5, पृ. 250
• बाह्य तप : बाह्य आवरण-शुद्धि साधना - 255 *