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________________ (5) कायक्लेश तप : काय-योग की साधना । यद्यपि 'कायक्लेश' शब्द का शाब्दिक अर्थ काया (शरीर) को कष्ट देना या शरीर से कष्ट सहना है किन्तु तपोयोग की अपेक्षा से इसका अर्थ है देह का ममत्व त्याग देना, निर्ममत्व भाव रखना तथा आसन आदि के अभ्यास द्वारा शरीर को साध लेना। विभिन्न प्रकार के आसनों के अभ्यास से तपोयोगी अपने शरीर को इतना साध लेता है कि वह सर्दी-गर्मी के द्वन्द्वों को सहने में सक्षम बन जाता है' तथा शारीरिक सुखों के प्रति उसमें आकांक्षा नहीं रहती। जैन आगमों में तथा आचार्य हेमचन्द्र के योगशास्त्र' में काय-क्लेश तप के अन्तर्गत अनेक आसनों का वर्णन किया गया है जिनके द्वारा तपोयोगी साधक अपने शरीर को चंचलतारहित, स्थिर और निश्चल बनाता है। उनमें से प्रमुख हैं-(1) कायोत्सर्गासन, (2) उत्कटिकासन, (3) पद्मासन, (4) वीरासन, (5) दण्डासन, (6) लगुडासन, (7) गोदोहिकासन, (8) पर्यंकासन, (9) वज्रासन आदि-आदि। (1) कायोत्सर्गासन-सीधा तनकर दोनों एड़ियों को परस्पर मिलाकर अथवा चार अंगुल का अन्तर रखकर खड़ा होना। इसका दूसरा नाम खड्गासन भी है। (2) उत्कटिकासन-इस प्रकार बैठना जिसमें दोनों पैरों की एड़ियाँ नितम्बों से लगी रहें। यहाँ पातंजल योगसूत्र वर्णित अष्टांग योग के तृतीय अंग 'आसन' का समावेश हो जाता है। देखिएस्थिर सुखमासनम्। ततो द्वन्द्वानभिघातः। -योगसूत्र 2/46, 47 निश्चलतापूर्वक बैठना आसन है। आसन की सिद्धि से सर्दी-गर्मी आदि द्वन्द्वों का आघात नहीं लगता। सार यह है कि कायक्लेश तप के अन्तर्गत 'आसन-जय' की साधना पूर्ण हो जाती शरीरदुःखसहनार्थं शरीरसुखानभिवांछार्थ -तत्त्वार्थसूत्र 9/19 श्रुतसागरीया वृत्ति विभिन्न आसनों के आगमिक सन्दर्भ के लिए इसी पुस्तक के सिद्धान्त खण्ड में 'जैन योग का स्वरूप' नामक अध्याय का 'जैन आगमों में आसन' शीर्षक देखिए।' 4. हेमचन्द्राचार्य-योगशास्त्र 4/124-134 *244 अध्यात्म योग साधना •
SR No.002471
Book TitleAdhyatma Yog Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2011
Total Pages512
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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