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________________ लेकर भिक्षा के लिए जाना। (5) पर्याय ऊनोदरी-उक्त चारों प्रकार की ऊनोदरी को क्रिया रूप में परिणत करना। उत्तराध्ययन में वर्णित ऊनोदरी के ये पाँचों भेद श्रमण की अपेक्षा से हैं। वैसे तपोयोग की अपेक्षा से ऊनोदरी के प्रमुख भेद दो ही हैं-(1) द्रव्य ऊनोदरी और (2) भाव ऊनोदरी। द्रव्य ऊनोदरी में तपोयोगी साधक आहार-वस्त्र-उपकरण (सामग्री) आदि को कम करता है और भाव ऊनोदरी में कषाय, राग-द्वेष, योगों की चपलता आदि को कम करता है, वचन की भी ऊनोदरी करता है यानी कम बोलता है। अल्पभोजन की तरह अल्पभाषण भी ऊनोदरी तप है। तपोयोग की दृष्टि से ऊनोदरी, अनशन की अपेक्षा कठिन तप है। इसे . वही साधक कर सकता है जिसका अपने मन और इन्द्रियों पर नियंत्रण हो। भूखा रह जाना तो सरल है; किन्तु जिस समय षट्रस व्यंजनों का थाल सामने रखा हो, पेट में भूख भी हो, मनुष्य खा भी रहा हो, 'और लीजिए' 'और लीजिए' की मनुहार भी हो रही हो; ऐसी स्थिति में भूख से कम खाना-ऊनोदरी करना उसी व्यक्ति के लिए संभव है, जिसका अपने मन और इच्छाओं पर नियंत्रण हो। यही स्थिति वस्त्र आदि के बारे में है। कषायों और राग-द्वेष के वेग को कम करना तो और भी कठिन है। अन्दर से क्रोध उबलने को फटा पड़ रहा है, बाहर क्रोध को भड़काने वाले निमित्त भी हों फिर भी उस आवेग को दबाना, कम करना बहुत ही कठिन कार्य है। इससे भी कठिन कार्य है लोभ को कम करना, सोने-चाँदी के अम्बार लगे हों, लाभ का अच्छा चांस हो फिर भी अपनी आवश्यकता से कम लेना, कितना कठिन है। अनशन में तो सिर्फ पेट की भूख पर ही काबू किया जाता है; किन्तु ऊनोदरी में मन के और कषायों के वेग पर भी नियंत्रण का अभ्यास किया जाता है, उन्हें कम किया जाता है। ___तपोयोगी साधक अपनी साधना के बल पर इस कठिन कार्य को भी सरल बना लेता है और सफलतापूर्वक ऊनोदरी तप की साधना करता है। द्रव्य-भाव ऊनोदरी तप की साधना से तपोयोगी साधक का प्रमाद कम हो जाता है, उसका आलस्य मिट जाता है तथा स्मृति, धृति, बुद्धि, सहिष्णुता, धैर्य आदि मानसिक शक्तियाँ बढ़ती हैं। * 240 * अध्यात्म योग साधना *
SR No.002471
Book TitleAdhyatma Yog Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2011
Total Pages512
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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