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________________ वैसे प्रकीर्णक तप के अन्तर्गत-(1) नवकारसी, (2) पौरसी, (3) पूर्वार्द्ध, (4) एकासन, (5) एक स्थान (एकलठाणा), (6) आयंबिल, (7) दिवस चरिम, (8) रात्रि भोजन त्याग, (9) अभिग्रह, (10) चतुर्थभक्त उपवास-इन दस तपों की गणना प्रमुख रूप से होती है। अनशन तप का द्वितीय भेद यावत्कथिक है। इस तप में जीवन भर के लिए आहार का त्याग करके संथारा किया जाता है। इसमें धीरे-धीरे काया को क्षीण किया जाता है और साथ ही साथ कषायों को भी क्षीण किया जाता है। यह अन्तिम समय की साधना है। इसके बाद फिर कोई साधना शेष नहीं रहती। ___तपोयोगी साधक अनशन तप के द्वारा शरीर और मन की शुद्धि करता है तथा आहार के विषय में अपनी आसक्ति कम करता है। वह आहार के त्याग के साथ ही साथ अपनी वृत्तियों को अन्तर्मुखी करता है। - इस प्रकार अनशन तप तपोयोगी साधक के लिए साधना की आधार-भूमि तैयार करता है। (2) ऊनोदरी तप : इच्छा नियमन साधना - . ऊनोदरी का अर्थ (ऊन कम, उदर-पेट) भूख से कम खाना होता है। आगम साहित्य में ऊनोदरी के 'अवमौदरिका' एवं 'अवमौदर्य' ये दो नाम और मिलते हैं। शब्दभेद होने पर भी इनके अर्थ में कोई अन्तर नहीं है। स्थानांग' सूत्र में ऊनोदरी तप के तीन प्रकार बताये हैं-(1) उपकरण अवमौदरिका, (2) भक्त-पान अवमौदरिका और (3) भाव (कषाय-त्याग) अवमौदरिका। भगवती' में द्रव्य ऊनोदरी और भाव ऊनोदरी-ये दो भेद किये गये हैं। उत्तराध्ययन में ऊनोदरी के पाँच प्रकार बताये गये हैं-(1) द्रव्य ऊनोदरी-आहार की मात्रा भूख से कम लेना, इसी प्रकार वस्त्र आदि भी आवश्यकता से कम लेना। (2) क्षेत्र ऊनोदरी-भिक्षा के लिए स्थान निश्चित करके वहीं से भिक्षा लेना। (3) काल ऊनोदरी-भिक्षा के लिए समय निश्चित करके उसी समय भिक्षा ग्रहण करना। (4) भाव ऊनोदरी-अभिग्रह 1. 2. 3. स्थानांग 3/3/182 . ओमोयरिया दुविहा-दव्वमोयरिया य भावमोयरिया। -भगवती सूत्र उत्तराध्ययन 30/10-11 * बाह्य तप : बाह्य आवरण-शुद्धि साधना * 239 *
SR No.002471
Book TitleAdhyatma Yog Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2011
Total Pages512
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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