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________________ जब व्यक्ति अपनी क्रियमाण क्रिया में इतना तल्लीन और तन्मय हो जाता है तभी उसकी क्रिया भावक्रिया बनती है और यह स्थिति सदा वर्तमान क्षण में ही आती है, इसीलिए वर्तमान क्षण की प्रेक्षा राग-द्वेषविजय की साधना है। प्रेक्षाध्यान से साधक को लाभ प्रेक्षाध्यान से साधक को अनेक प्रकार के लाभ होते हैं। उनमें से कुछ प्रमुख लाभ हैं (1) अप्रमत्तता-प्रेक्षाध्यान-साधना से साधक का प्रमत्तभाव समाप्त हो जाता है और अप्रमत्तभाव आ जाता है। __ (2) मन की एकाग्रता-प्रेक्षाध्यान-साधक के मन की एकाग्रता सध जाती है, उसका चित्त चंचल नहीं होता है। (3) संयम की साधना सुकर-प्रेक्षाध्यान से साधक की संयम-साधना सरल और सहज हो जाती है। संयम के उपसर्ग और परीषह उसे अधिक पीड़ित नहीं कर पाते। ___ जिस प्रकार कुम्भक श्वास का निरोध है, उसी प्रकार संयम इच्छाओं का निरोध है। प्रेक्षाध्यान का साधक मन की इच्छाओं, संकल्प-विकल्पों को देखता और जानता ही है; किन्तु न उन इच्छाओं में राग-द्वेष ही करता है और न आचरण ही। अतः प्रेक्षा स्वयं संयम है, आत्मभावों का कुम्भक है। (4) आत्मा और शरीर का भेदविज्ञान-प्रेक्षाध्यान के साधक को आत्मा और शरीर की पृथक्ता का प्रत्यक्ष अनुभव होता है। वह स्पष्ट देख लेता है कि आत्मा पृथक् है और मन-शरीर-इन्द्रियाँ आदि पृथक् हैं। उसे स्व-पर के भेदविज्ञान का प्रत्यक्ष अनुभव हो जाता है। . (5) चैतन्य केन्द्रों का जागृत होना-प्रेक्षाध्यान की साधना से तैजस् शरीरस्थित चैतन्य केन्द्र, चक्रस्थान सक्रिय हो जाते हैं। (6) ज्ञाता-द्रष्टाभाव का विकास-प्रेक्षाध्यान में साधक तटस्थ ज्ञाताद्रष्टा बना रहता है, अतः उसमें ज्ञाता-द्रष्टाभाव का विकास हो जाता है और यही भाव आत्मा का स्वभाव है। (7) वस्तु के स्वरूप को जानने की क्षमता का विकास-प्रेक्षाध्यान-साधना में जब साधक किसी एक पुद्गल पर, अपने शरीर आदि पर दृढ़ता-पूर्वक दृष्टि निक्षेप करता है तो उसे उस पदार्थ की वास्तविकता का वास्तविक स्वरूप का ज्ञान हो जाता है। *210* अध्यात्म योग साधना *
SR No.002471
Book TitleAdhyatma Yog Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2011
Total Pages512
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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