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________________ सकता। संकल्प विकल्प, राग-द्वेष आदि कोई भी प्रवृत्ति नहीं होती और यदि किसी भी प्रकार की मन की प्रवृत्ति होती है तो प्रेक्षा नहीं होगी, देखने का क्रम टूट जायेगा। देखना, विचारों के क्रम और सिलसिले को तोड़ने का - निर्विचार स्थिति लाने का अचूक और अमोघ साधन है। यह कल्पना के जाल को, भूत काल के भोगे हुए भोगों की स्मृति को और भविष्य की आशाओं-आकांक्षाओं को तोड़ने का प्रबल साधन है। साधक जब किसी बाह्य वस्तु को अनिमेष दृष्टि से देखता है तो उसके विकल्प समाप्त हो जाते हैं, विचारशून्यता की स्थिति आ जाती है। साधक पहले अपने स्थूल शरीर को देखता है, उसमें होने वाले प्रकंपनों को देखता है और फिर तैजस् और सूक्ष्म शरीर तथा वहाँ होने वाली हलचलों को देखता है, इस प्रकार उसकी प्रेक्षा गहन से गहनतर होती चली जाती है। प्रेक्षा में सिर्फ चैतन्य - सत्ता अथवा चेतना ही सक्रिय होनी चाहिये । यदि उसमें राग-द्वेष, रति- अरति, प्रियता - अप्रियता का भाव आ जाए. तो वह देखना नहीं रहता। जैसे दर्शन के पश्चात् ज्ञान का क्रम है। यही देखने-जानने का क्रम है। दर्शनपूर्वक ही ज्ञान होता है। ज्यों-ज्यों साधक देखता जाता है त्यों-त्यों वह जानता भी जाता है। मन और इन्द्रियों के संवेदन से परे सिर्फ चेतना द्वारा ही. देखना और जानना - चैतन्य का उपयोग है और यह साधक का चरम लक्ष्य है; क्योंकि केवली भगवान भी सिर्फ चैतन्य उपयोग के द्वारा ही देखते और जानते हैं। ग्रन्थों में देखने और जानने के लिए नेत्रों का उदाहरण दिया गया है। छद्मस्थ प्राणी नेत्रों से ही देखता - जानता है । चक्षु इन्द्रिय सामने आने वाले विभिन्न प्रकार के दृश्यों को देखती है, जानती है; किन्तु दर्पण के समान उस पर कोई संस्कार नहीं पड़ते। न वह उन दृश्यों का निर्माण करती है, न राग-द्वेष करती है और इसीलिए वह उनका फल भोग भी नहीं करती। अतः चक्षु अकारक और अवेदक है। इसी प्रकार ज्ञानी साधक जब प्रेक्षाध्यान में गहरा उतरता है, किसी वस्तु को देखता है तो वह भी अकारक होता है, वह न कर्मों का आस्रव करता है, न उसको कर्मबंध होता है, न विपाक प्राप्त कर्मों के फल का वेदन ही वह करता है और न उन कर्मों से उसका तादात्म्य ही स्थापित होता है। * 202 अध्यात्म योग साधना
SR No.002471
Book TitleAdhyatma Yog Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2011
Total Pages512
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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