________________
यही कारण है कि जैन साधक को, चाहे वह गृहस्थ साधक हो अथवा गृहत्यागी श्रमण साधक हो, षडावश्यक की साधना प्रतिदिन करने का जैन आगमों और ग्रन्थों में निर्देश दिया गया है। षडावश्यक की साधना द्वारा वह सम्पूर्ण अध्यात्मयोग और अष्टांगयोग की साधना सतत करता है।
हाँ, इतना अवश्य है कि परिस्थिति, पदवी, योग्यता और क्षमता के अनुसार गृहस्थ साधक और गृहत्यागी साधक की षडावश्यक साधना में अन्तर आ जाता है; और यह स्वाभाविक भी है। फिर भी दोनों का ध्येय एक ही है और वह है मोक्ष। श्रमण अपने ध्येय की ओर शीघ्र गति से अग्रसर होता है, जबकि गृहस्थ साधक की गति मन्द होती है। पर दोनों ही अपने लक्ष्य मोक्ष-प्राप्ति की ओर बढ़ते रहते हैं।
* 176 * अध्यात्म योग साधना *