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________________ वचनगुप्ति है। दूसरे शब्दों में वाणी - विवेक, वाणी- संयम और वाणी - निरोध ही वचन - - गुप्ति है। (3) कायगुप्ति - संरम्भ, समारम्भ और आरम्भ में प्रवृत्त काययोग का निरोध करना कायगुप्ति है, साथ ही सोते-जागते, उठते-बैठते, खड़े होते तथा लंघन-प्रलंघन करते समय तथा इन्द्रियों के व्यापार में काययोग का निरोध गुप्त है। 2 आगमों में मनोगुप्ति के साथ-साथ मनःसमिति का वर्णन भी किया गया है। वहाँ समिति शब्द का निर्वचन इस प्रकार किया गया है - ' सं- सम्यक्, इति–प्रवृत्ति' अर्थात् सम्यक् प्रवृत्ति ही समिति है। मन की सत्प्रवृत्ति को मनःसमिति माना गया है और मनोगुप्ति से मन का निरोध द्योतित किया गया है। जिस प्रकार मनः समिति का वर्णन आगमों में प्राप्त होता है, उसी का 1. 2. 3. वाचन् पृच्छन् प्रश्नव्याकरणादिष्वपि सर्वथा वाङ्निरोधरूपत्वं सर्वथा भाषानिरोधरूपत्वं वा वाग्गुप्तेर्लक्षणं । - आर्हत्दर्शन दीपिका 5/644 ठाणे निसीयणे चेव, तहेव य तुयट्टणे । उल्लंघणपल्लंघणे, इन्दयाण य जुञ्जणे ।। संरम्भसमारम्भे, आरम्भम्मि तहेव य। कायं पवत्तमाणं तु, नियत्तेज्ज जयं जई || - उत्तराध्ययन सूत्र 24/24-25 (क) मणेण पावएणं पावकं अहम्मियं दारुणं निस्संसं वहबंधपरिकिलेसबहुलं मरणभयपरिकिलेससंकिलिट्ठ त कयावि मणेण पावतेणं पावगं किंचिविज्झायव्वं मणसमिति योगेण भावितो णं भवति अन्तरप्पा | - प्रश्नव्याकरण सूत्र, संवरद्वार (ख) मणगुत्तीए णं भंते! जीवे किं जणय ? मणगुत्तीए णं जीवे एगग्गं जणयइ । एगग्गं चित्ते णं जीवे मणगुत्ते - उ.सू. 29/53 संजमाराहए भवइ । (तत्र मनोनिरोधस्य प्रधानत्वाद्-व्याख्याकारः।) तात्पर्य यह है कि मनोगुप्ति से मन की एकाग्रता और एकाग्रता से मन का निरोध होता है। तथा मन से किसी भी प्रकार के पाप का चिन्तवन न करना, मनःसमिति है। फलित यह है कि मन का निरोध निवृत्ति है और पाप का चिन्तन न करके शुभ-शुद्ध का चिन्तन प्रवृत्ति है। इन दोनों के ही अवलम्बन से योगमार्ग की पूर्णता होती हैं। * जयणायोग साधना (मातृयोग) 157
SR No.002471
Book TitleAdhyatma Yog Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2011
Total Pages512
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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