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समिति-गुप्तियों की साधना करते हुए सहज ही-स्वाभाविक रूप से, बिना विशेष प्रयत्न किये ही योग के सभी अंगों की साधना हो जाती है तथा साधक अपने लक्ष्य-सिद्धि को प्राप्त कर लेता है।
अष्ट प्रवचन माता (तीन गुप्ति और पाँच समिति) मन की अथवा चित्त की विशुद्धि आत्मिक विकास में अतीव सहायक है। विशुद्धता से ही मन एकाग्र होता है और आत्मा अपने लक्ष्य-मोक्ष तक पहुँचता है। किन्तु मन की विशुद्धि के लिए अशुभ प्रवृत्तियों का शमन तथा शुभ एवं शुद्ध प्रवृत्तियों का आचरण अनिवार्य है।
शुभ और शुद्ध प्रवृत्तियों के आचरण एवं अशुभ प्रवृत्तियों के उपशमन के लिए समितियों तथा गुप्तियों का विधान किया गया है। . गुप्तियाँ मन-वचन-काय की अशुभ प्रवृत्तियों को रोकती हैं और समितियाँ शुभ चारित्र की प्रवृत्ति के लिए हैं।' - गुप्तियों से मन-वचन-काय की स्थिरता-एकाग्रता प्राप्त होती है और समितियों द्वारा शुभ प्रवृत्तियों की ओर उन्मुख होने-शुभाचरण का पालन करने का अभ्यास प्रबल होता है। अतः इन दोनों का संयुक्त नाम अष्ट प्रवचन माता है। __ ये अष्ट प्रवचन माता (गुप्ति और समिति) श्रमणयोगी का वह योग है, जो उसे मोक्ष महल तक पहुँचाने में समर्थ है। श्रमणाचार की अपेक्षा तो इनका महत्त्व है ही; किन्तु योग-मार्ग की दृष्टि से भी इनका महत्त्व अत्यधिक है। ___ इनकी परिपालना श्रमणयोगी के लिए आवश्यक ही नहीं, अनिवार्य है। क्योंकि ये श्रमण के महाव्रतों का माता की तरह रक्षण एवं पोषण करती हैं।
गुप्तियाँ गुप्ति का लक्षण-सम्यग्दर्शन और सम्यग्ज्ञान पूर्वक त्रियोग (मन-वचन
-उत्तराध्ययन 25/23
1. एयाओ पंच समिइओ, चरणस्स य पवत्तणे।
गुत्ती नियत्तणे वुत्ता, असुभत्थेसु सव्वसो।। 2. (क) अट्ठ पयणमायाओ, समिई गुत्ती तहेव या
पंचेव य समिईओ, तओ गुत्तीओ आहिया। (ख) एताश्चारित्रगात्रस्य, जननात्परिपालनात्।
संशोधनाच्च साधूनां, मातरौष्टौ प्रकीर्तिता।।
-उत्तराध्ययन 24/1
-योगशास्त्र 1/45
* जयणायोग साधना (मातृयोग) - 155 *