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________________ दूसरी प्रतिमा में वह दो दत्ति अन्न की और दो दत्ति पानी की ग्रहण करता है तथा प्रथम प्रतिमा के सभी नियमों का यथारीति पालन करता है। इसका कालमान दो मास का है। तीसरी प्रतिमा का काल तीन मास का है। प्रथम प्रतिमा के सभी नियमों का पालन करते हुए वह तीन दत्ति अन्न की और तीन दत्ति पानी की लेता है। चौथी पाँचवीं, छठी और सातवीं प्रतिमाओं का कालमान क्रमशः चार, पाँच, छह और सात मास है तथा दत्ति-संख्या भी क्रमशः चार, पाँच, छह और सात है। इन सातों प्रतिमाओं में संसारत्यागी श्रमण योग की विभिन्न क्रिया-प्रक्रियाओं की और विशेष रूप से समत्वयोग की साधना करता है। वह सभी प्रकार के मानसिक-शारीरिक तथा आधिदैविक, आधिभौतिक कष्टों को समभाव से सहता हुआ आत्म-साधना में लीन रहता है। आगे की प्रतिमाएँ : तप के साथ आसन-जय आठवीं प्रतिमा में संसारत्यागी श्रमण साधक एक दिन का निर्जल उपवास (चतुर्थ भक्त) ग्रहण करके ग्राम अथवा नगर के बाहर उत्तानासन, पाश्र्वासन अथवा निषद्यासन द्वारा कायोत्सर्ग में स्थिर रहता है। मल-मूत्र की बाधा यदि हो तो प्रतिलेखित भूमि पर मल-मूत्र त्याग कर पुनः अपने स्थान पर आकर कायोत्सर्ग में लीन हो जाता है। उस समय उस पर कैसा भी उपसर्ग आवे किन्तु वह अपने ध्यान से विचलित नहीं होता। इस प्रतिमा का काल एक सप्ताह का है। ___ नौवीं प्रतिमा भी सात दिन-रात अथवा एक सप्ताह की है। इस प्रतिमा के आराधन काल में साधक दण्डासन, लकुटासन या उत्कटुकासन से कायोत्सर्ग एवं ध्यान-साधना में लीन रहता है। दसवीं प्रतिमा भी सात दिन-रात की है। इसके आराधना काल में साधक गोदोहनिकासन, वीरासन और आम्रकुब्जासन से कायोत्सर्ग तथा आत्म-ध्यान करता है। ग्यारहवीं प्रतिमा एक अहोरात्रि (24 घण्टे-प्रथम दिन के सूर्योदय से लेकर दूसरे दिन के सूर्योदय तक) की है। इस प्रतिमा के आराधना काल में साधक दो दिन का निर्जल उपवास (षष्ठ भक्त-बेला) करता है। ग्राम 1. आयारदसा, सातवीं दशा, सूत्र 26-31, पृष्ठ 79-80 * विशिष्ट योग-भूमिका : प्रतिमा-योगसाधना * 151 *
SR No.002471
Book TitleAdhyatma Yog Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2011
Total Pages512
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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