SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 224
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आज्ञा लेना) और (4) पृष्ठ व्याकरणी (किसी व्यक्ति द्वारा किये गये प्रश्न का उत्तर देना) - इन चार प्रकार की भाषाओं को बोलने के अतिरिक्त सर्वथा वचनालाप का त्याग कर देता है। वह वृक्ष मूल में, चारों ओर से खुले स्थान में अथवा उद्यान में बने लतामण्डप में, शिला अथवा काष्ट (लकड़ी का पार्ट) पर ही रात बिता देता है। वह शरीर के प्रति इतना विरक्त हो जाता है कि जिस उपाश्रय - धर्म - स्थानक अथवा स्थान पर वह ठहरा हो, उसमें किसी प्रकार आग आदि का उपद्रव हो जाये तो वहाँ से बाहर नहीं निकलता। यदि गमन करते समय उसके पैर में काँटा, काँच आदि चुभ जाये तो उसे निकालता नहीं, उसी दशा में इर्यासमितिपूर्वक गमन करता है। इसी प्रकार आँख में गिरे कंकड़, तिनके आदि को नहीं निकालता । जहाँ भी सूर्यास्त हो जाये - दिन का चौथा - प्रहर समाप्त हो जाये, वहीं वह पूरी रात के लिए ठहर जाता है, चाहे वह स्थान भयानक वन हो, पर्वत हो या नगर - ग्राम का बाह्य भाग हो । चाहे शीतकाल में वहाँ बर्फीली हवाएँ चल रही हों अथवा हिंसक पशुओं की गर्जनाएँ हो रही हों । वह सचित्त पृथ्वी पर न चलता है, न बैठता है और न नींद लेता है। यदि मार्ग में गमन करते समय सिंह आदि कोई हिंसक पशु सामने आ जाये तो वह एक कदम भी पीछे नहीं हटता, इतना निर्भय होता है वह । किन्तु साथ ही इतना दयालु भी होता है कि गाय आदि सामने आ जाये तो उसे मार्ग देने के लिए चार कदम पीछे हट जाता है। यानी अपनी प्राण-रक्षा के निमित्त वह एक कदम भी पीछे नहीं रखता किन्तु दूसरों की सुविधा के लिए पीछे हट जाता है। वह शरीर के ममत्व और देहाध्यास से इतना दूर होता है कि शीत - निवारण के लिए धूप में अथवा ग्रीष्म ऋतु में धूप से बचने के लिए छाया में जाने की इच्छा भी नहीं करता । इस प्रकार कठोर नियमों का पालन करते हुए वह प्रथम प्रतिमा की साधना करता है।' इस सम्पूर्ण प्रतिमा में वह मन-वचन-काय - तीनों योगों को वश में रखकर संवर एवं ध्यानयोग की साधना में रत रहता है। आयारदसा, सावतीं दशा, सूत्र 1-25, पृ. 67-79 1. * 150 अध्यात्म योग साधना
SR No.002471
Book TitleAdhyatma Yog Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2011
Total Pages512
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy