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________________ इनमें अतिक्रम, व्यतिक्रम और अतिचार तो व्रतों के दोष हैं। अनाचार तो व्रत का सर्वथा उल्लंघन ही है; यह तो श्रावक करता ही नहीं; किन्तु उसे अपने स्वीकृत व्रतों में तनिक भी दोष नहीं लगाना चाहिए, निर्दोष रूप से व्रतों का पालन करना चाहिये । श्रावक के बारह व्रत ये हैं- (1) पाँच अणुव्रत, (2) तीन गुणव्रत और ( 3 ) चार शिक्षाव्रत। श्रावक इन सभी व्रतों को दो करण और तीन योग से ग्रहण करता है । ये योग तीन हैं - मन, वचन और काया तथा करण भी तीन हैं-कृत, कारित, अनुमोदना । इनमें श्रावक अनुमोदना का त्यागी नहीं हो पाता । ' अणुव्रत श्रावक के अणुव्रत पाँच हैं - ( 1 ) स्थूल प्राणातिपातविरमण, (2) स्थूल मृषावादविरमण, (3) स्थूल अदत्तादानविरमण, (4) स्वदार - सन्तोष व्रत, (5) स्थूल परिग्रहपरिमाण व्रत अथवा इच्छा परिमाण व्रत। (1) स्थूल प्राणातिपातविरमण इसका दूसरा नाम अहिंसाणुव्रत है। इसमें श्रावक स्थूल अथवा त्रस जीवों की हिंसा का त्याग करता है। संसार में स्थावर और त्रस अथवा सूक्ष्म और स्थूल दो प्रकार के जीव हैं। पृथ्वीकाय, जलकाय, तेजस्काय, वायुकाय और वनस्पतिकाय - ये पाँचों प्रकार के जीव स्थावर कहलाते हैं। गृहस्थ श्रावक इन स्थावरकाय के जीवों की हिंसा का त्याग नहीं कर पाता, क्योंकि गार्हस्थिक तथा सामाजिक जीवन सुचारु रूप से बिताने के लिए वह इन जीवों की हिंसा से बच नहीं सकता है; फिर भी वह इनकी हिंसा भी कम से कम अर्थात् मर्यादित रूप से ही करता है। श्रावक त्रस जीवों की हिंसा का त्यागी होता है। उसमें भी वह निरपराधी त्रस जीवों की हिंसा का ही त्याग कर पाता है, अपराधी जीवों की हिंसा का त्याग नहीं कर पाता । हिंसा के प्रमुख रूप से दो भेद हैं- ( 1 ) भाव - हिंसा और (2) द्रव्य-हिंसा। मन-वचन-काय में राग-द्वेष आदि कषायों की वृत्ति भाव - हिंसा 1. श्रावकधर्म के विशेष अध्ययन हेतु पढ़ें- जैन तत्त्व कलिका : अष्टम कलिका (आचार्य श्री आत्माराम जी महाराज ) । * योग की आधारभूमि : श्रद्धा और शील (1) * 113 *
SR No.002471
Book TitleAdhyatma Yog Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2011
Total Pages512
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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